भौतिकवाद

by A Nagraj

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2. समुदायगत रुढ़ियाँ पीढ़ी से पीढ़ी बड़ी आस्था से संपन्न की जाती है और इन्हें शोक संवेदनाओं के क्षणों में भी व्यक्त किया जाता है। जिसमें स्वीकृतियाँ रहती है ऐसी रुढ़ियों के प्रति उसी समुदाय में अंतर्विरोध हो जाए।

3. किसी अधिकार के प्रति किसी की प्रतिबद्घता (जैसे शासन सत्ता में बैठे हुए शीर्ष व्यक्ति से प्रदत्त अधिकार और अधिकारी सहित, अधिकार प्रयोग, अधिकार वितरण) में यदि अंतर्विरोध हो जाए।

4. किसी वस्तु के प्रति एक से अधिक व्यक्तियों के बीच स्वत्व की प्रतिबद्घता हो।

ऐसी स्थितियों में अंतर्विरोध होने पर प्रतिबद्घताएँ, मान्यताएँ, रुढ़ियाँ विकेन्द्रित होकर परिवर्तन के लिए अनुकूल परिस्थिति बनती हैं। हम परिर्वतन के आधार पर बिन्दुओं को पहचानने के लिए तत्पर होते हैं। आवश्यकता को स्वीकार करते है तब यह पता लगता है कि -

1. सत्ता परिवर्तन, हस्तांतरण, विकेन्द्रीकरण- इन प्रकारों से सोचा गया।

2. धर्म परितर्वन इसमें दो प्रकार की अपेक्षा मानव मानस में रही।

वह (एक) धर्म में जो रुढ़ियाँ है उनसे बाज आकर दूसरी धर्म रुढियों को स्वीकारना।

(दो) जो तर्क की कसौटि में आते नहीं, उन तमाम रुढ़ियों का तर्क संगत होने के क्रम में अथवा उनकी निरर्थकता, मानव मानस में स्पष्ट हो जाये।

इस प्रकार की तमन्ना लेकर बहुत से यति, सती, संत, तपस्वी, महापुरुष, प्रचारक, धर्म प्रचारक, सत्य प्रचारक, प्रचार साहित्य के रूप में प्रयत्न करते रहे, अथक प्रयास करते रहे। यहाँ उल्लेखनीय बात यही है कि जहाँ-जहाँ इसके अंतर्विरोध हुए, रुढ़ियों में थोड़ी ढिलाई दिखी, तब इन प्रचारों की भलमनसाहत सफल हुआ मान लेते हैं। जब एक निश्चित धर्म समुदाय में अंतर्विरोध के फलस्वरुप रुढ़ियों में ढिलाई हुई थी, वही समुदाय जब बाह्य अर्थात् उससे भिन्न समुदायों के सम्मुख विरोधों से घिरते है तब उन समुदायों अथवा उस समुदाय में रुढ़ि की मंशा और दृढ़ हो जाती है।

राज्य में भी इस बात को ऐसा परखा जा सकता है कि जब जब देशवासियों में अंतर्विरोध होता है तब तब देश में भी अनेक भूखंड अथवा अनेक देश बनने की इच्छा व्यक्त होती है। वहीं जब बाह्य विरोध होता है अर्थात् बाह्य देशों से आक्रमण की