भौतिकवाद

by A Nagraj

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अध्याय - 8

समाज, धर्म (व्यवस्था) और राज्य

विगत का विश्लेषण व वर्तमान की समीक्षा :-

धर्म :- जब से इस धरती पर आदर्शवादी विचार प्रभावी रहा है, तब से इतिहास के अनुसार राज्य एक कार्यक्रम रहा है। धर्म का आधार आदर्शवाद रहा, पावन ग्रंथ (ईश्वर वाणियाँ) आधार रहे। ये वाणियाँ सर्वाधिक ईश्वर कृपा, कल्याण, मोक्ष संबंधी आश्वासन के आधार पर आस्था का स्रोत रहीं। इस मुद्दे पर भी आस्था निर्मित हुई कि पावन ग्रंथों के वचनों में पापियों का नाश करने के लिए ईश्वर ही स्वयं दृढ़ संकल्पित हैं। पुण्यशीलों का उद्घार करना उनका एक महत्वपूर्ण कार्य बताया गया। यह बात लोगों को पसंद आई, लोगों ने मान भी लीं। उल्लेखनीय बात यह रही कि विविध पावन ग्रंथों में पुण्य के लिए जो उपदेश दिए गए, वह विविध रूप हो गये। पुण्य के लिए जो कुछ भी विविध रुपों में कहे गये क्रियाकलाप है, जिसकी पुष्टि प्राचीन पावन ग्रंथों में होना पाया जाता है, उसी को आज तक हम धर्म मानते आए हैं। मानव पुण्यशील बनने के विविध तरीकों के आधार पर वाद-विवाद किया करते हैं। अंततोगत्वा कटुता, दुष्टता के कटघरे में आ जाते हैं। यही, इतिहास के अनुसार और इस वर्तमान के अनुसार, पाए जाने वाले वाद-विवाद का प्रधान आधार रहा। इससे भी बड़ी बात यह रही है कि, “अपने पराए की दीवारें” बनने का महत्वपूर्ण कच्चा माल, इन्हीं पुण्यार्जन की विविधता में रहा, जिसको आज तक हम लोग संस्कार मानते आए हैं।

सभी धर्म परंपराओं में निश्चित चिन्ह जैसे:-

1. चमड़े के रंग के आधार पर अथवा बाल के आधार पर।

2. अन्य वस्तुएँ, चाहे औषधि वस्तु हो या वनस्पति वस्तु हो, वह अपने ही मूल आकार में हो और कोई लकड़ी, धातु, पत्थर, कपड़े-इनका निश्चित आकार बनाकर (मूर्तियाँ वगैरह) हमने पहन लिए।

3. किसी एक धर्म परंपरा में रहने वाले, जिस आहार पद्घति को स्वीकारते है, दूसरा उसको निषेध मानते हैं।