भौतिकवाद
by A Nagraj
4. इन्हीं के आधार पर, पावन स्थली कहलाने वाले स्वरुप, मिट्टी, पत्थर, ईंट, धातुओं से निर्मित हुई स्थली को बताते हैं।
विभिन्न धर्म कहलाने वाले, अपने-अपने मान्य, पावन स्थलियों में, अपने-अपने ढंग से प्रार्थनाएँ करते हैं। इन सभी प्रार्थनाओं का पावन स्वरुप यही है कि रहस्यमय ईश्वर की कृपा हो, सबका कल्याण हो, पापियों एवं दुष्टों का नाश हो। प्रार्थना करने वाले स्वयं के उद्घार की चाहत प्रस्तुत करते हैं। इन बातों में यह भी विचित्रता देखने को मिलती है कि जो जिस धर्म की पावन स्थली है, उस स्थान में दूसरे धर्म वाले आदमी के पहुँचने पर, वह स्थल ही अपवित्र हो गया ऐसा माना जाता है। इनमें उल्लेखनीय बात यह है कि क्रमांक (1) में बताए गए आधार पर चमड़े, बाल के जो चिन्ह बनते है, वह केवल पुरुषों तक ही देखने को मिलता है। इसी के साथ कपड़े को विविध तरीके से, धर्म चिन्ह के आधार पर, बनी हुई बनावटों को भी, पुरुषों में देखने को मिलता है। नारियों में विशेषकर धातु-पत्थर, वनस्पतियों, वस्तुओं से बनी हुई चीजें जो पावन ग्रंथों द्वारा स्वीकार्य रहता है, उसको पहन लेते है (जैसे माला आदि)। ये धर्मग्रंथ बताते है कि इसी को पहनना है या उसको नहीं पहनना है। नारियाँ, धार्मिक ग्रंथों की अनुमति व रुढ़ियों के अनुरुप कपड़े पहनती दिखाई पड़ती हैं। पचास वर्ष पहले निश्चित धर्म समुदाय का पहनावा अलग दिखता था, अब पहनने वालों के मन की पसंदगी के आधार पर पहनावा दिखाई पड़ता है। पहनने-ओढ़ने में कट्टरता कुछ लोगों में है भी। क्रमश: यह कट्टरता अब लचीली होने की संभावना दिखाई पड़ती है।
अभी तक के इतिहास और मानव परंपराओं में हुए परिर्वतन सहित आज की स्थिति को संयुक्त रूप में देखने पर पता चलता है कि किसी रुढ़ि का पालन (रुढ़ि का तात्पर्य संज्ञानशीलता अर्थात् जानना, मानना, पहचानना, ये तीनों चीजें न हो, केवल मान लिया हो। यही रुढ़ियाँ तर्क संगत न होने के आधार पर ही अंतर्विरोध और बाह्य विरोध का कारण होती है) शब्द, साहित्य, कला और आहार-विहारों में की गई अभिव्यक्ति पूजा, पाठ, प्रार्थना के तरीके, किसी वस्तु या पद के प्रति प्रतिबद्घताएँ, तभी परिवर्तित होते हुए देखने को मिला जब :-
1. रुढ़ियों (सामुदायिक, धर्म व राज्य संविधान) के आधार पर आचरण जिसने किया है, उसे अंतर्विरोध हो जाए।