भौतिकवाद
by A Nagraj
व्याख्यायित और व्यक्त है। व्यवस्था और उसकी अक्षुण्णता के प्रति मानव भ्रमित रहा, अत: मानव का पीड़ित रहना अवश्यंभावी रहा। इसीलिए अव्यवस्था की समझ मानव को आदि काल से ही पीड़ा के रूप में रही है। मानव व्यवस्था की आशा आकांक्षा के आधार पर ही परिवर्तनों को स्वीकारते आया हैं। मानव का विभिन्न इतिहास इस बात को उजागर करता है। अभी इस समय में अथवा इस संघर्ष युग में मानव ने अपने आप में सुविधा भोग के लिए द्रोह, विद्रोह, शोषण और युद्घ को निश्चित औजार मान लिया है।
आज की स्थिति में सुविधा की परिभाषा यही दिखाई पड़ रही है। मानव जाति जिसको सुविधा मान रही है उसका मूल ध्रुव संग्रह है। संग्रह पर ही सुविधा और भोग टिका हुआ है। यह पूर्णतया शहरी जिंदगी में इसी प्रकार दिखाई पड़ता है। शहर में अच्छी सड़कें, अच्छा घर, अच्छी गाड़ी, अच्छी दवाई, अच्छे खिलौने और घर के अंदर जितने भी आधुनिक, अत्याधुनिक गृहशोभा और उपयोगी मानी गई चीजें, जैसे-फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, मिक्सी, ग्राइन्डर और छत को सजाने के लिए सभी इंतजामात, चमकता हुआ बाथरुम, बेडरुम, ड्रांइग रुम और किचन, इन्हीं प्राप्त सुविधाओं को प्रमाणित करने की स्थली माना गया है। साथ ही घर में मनोरंजन के लिए टीवी, वीसीआर, रेडियो, फोटोग्राफिक कैमरे, टेप रिकार्डर माने गये हैं। सुविधाजनक खुशहाली की अभिव्यक्ति कैमरा, वीडियो कैमरा, बड़े-बड़े एलबम हैं। इनको उपलब्धि माना जाता है। इन सब सुविधाओं को आदर्श मानकर प्राप्त कर लिया गया है।
जो लोग सरकारी सेवा में अर्पित रहते है, उनके अनुसार हम सेवा कुछ भी करें, जैसे भी करें, अगर सेवा नियंत्रण कानून के प्रति कार्यों में वफादार रह सकें, तो किसी भी कार्य का परिणाम, उसकी जिम्मेदारी, किसी शासकीय अधिकारी एवं कर्मचारी पर न हो- यही मुख्य रूप से सुविधाजनक नौकरी की प्रवृत्ति कार्य करती दिखाई पड़ती है। व्यसनों के चंगुल में जो नहीं है, उन लोगों का आहार अल्पाहार जैसा ही है। जो पर- पुरुष, पर-नारी, नशाखोरी, जुआखोरी और विविध प्रकार के कृत्यों में लिप्त रहते है, उन लोगों के आहार कर्म को देखने पर पता लगता है कि ये कुछ ज्यादा खाते है। पहले वाले आहार में रहने वाले सादगी में रहना मानते हैं। उससे भी अधिक सादगी में रहने वालों को भी देखा गया है। कम से कम घर को चमकाएँ रखें, कम से कम खाएँ और सामान्य रूप में कपड़ा