भौतिकवाद
by A Nagraj
पहनें, टी.वी. रहते हुए उचित कार्यक्रम, जिन्हें वे पावनग्रंथ रचित मानते है, ऐसे कार्यक्रम को देखते हैं। इनमें से कोई सुविधावादी सरकारी सेवा में भागीदारी निर्वाह करते हुए दिखाई पड़ते हैं। ऐसे में सर्वाधिक समानता जैसी कोई चीज है, जैसा कुछ ऊपर चित्रण किया गया है, उनका वर्गीकरण करने पर यह स्पष्ट बात दिखती है-
1. सुविधावादी व्यक्ति जो वस्तुओं, व्यसनों में लिप्त है।
2. सुविधावादी व्यक्ति जो सुविधा में लिप्त है, व्यसनों में लिप्त नहीं है।
3. सुविधावादी व्यक्ति संग्रह में लिप्त है।
4. सुविधावादी व्यक्ति वस्तु और व्यसनों में अलिप्त रहने के रूप में दिखाई पड़ते हैं।
आज की स्थिति में व्यसन स्थलों को आकर्षक, सम्मोहकता विधि से, लोगों को व्यसनी बनाने के उद्देश्य से अर्थात् कामोन्माद, भोगोन्माद को जगाने के लिए, तीव्र बनाने के लिए सभी प्रकार के साधन और उपलब्धियाँ लोगों के सम्मुख करवा चुके हैं। आज की स्थिति में व्यसन व्यापार सर्वोपरि लाभोन्मादी व्यापार माना जाता है। कई देश इसको संवैधानिक मान चुके हैं। कुछ देशों का संविधान इसकी संवैधता को स्वीकारने की सोच रहे हैं। यह आज की स्थिति हैं। व्यसन भी आज के मानव के लिए एक आदर्श सा बन चुका है। इस प्रकार सुविधावादी शहरी जीवन में व्यसनों की स्थापना को देखा गया हैं। इस विधि से अर्थात् सुविधावादी विधि से कोई भी ऐसा स्थान नहीं मिला है जहाँ व्यवस्था में भागीदारी होने का स्थिति रूप दिखाई पड़े।
सुविधा के लिए संपूर्ण स्रोत यह धरती हैं। धरती से प्राप्त पदार्थों को सुविधा योग्य बनाना, उसकी तकनीकी प्रक्रिया के लिए प्रौद्योगिकी अभ्यास इस धरती पर स्थापित हो चुका है। बहुत अधिक तादाद में आज धरती की वस्तुओं को सुविधा योग्य वस्तुओं में परिवर्तित करना है, ऐसी सभी वस्तुएँ सभी मानवों को मिले, ऐसा सोचने पर आज की स्थिति में जितनी सुविधाजनक वस्तुएँ है, ये सभी वस्तुएँ आज जितनी संख्या में इस धरती पर मानव है, सबको उतनी तादाद में बनी वस्तुएँ नहीं मिल सकती।
इसके दो प्रधान कारण है-
1. इस धरती पर उतनी वस्तुएँ नहीं है, जिससे हर व्यक्ति को या हर परिवार को उसकी कल्पना के अनुसार सुविधा मिल सकें। इन कल्पना के अनुकूल वस्तुओं को बनाने के लिए आज जितनी प्रौद्योगिकी है, उससे कम से कम अरबों गुना अधिक