जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
तीसरा - तीसरी विधि में हम नैतिक तभी होते हैं जब अपने तन, मन, धन रूपी अर्थ का सदुपयोग करते करते हैं, सुरक्षा करते हैं।
इस ढंग से नैतिक मानव, मूल्य मानव, चरित्र मानव यह तीनों मिलकर मानवीय आचरण बनता है। व्यवस्था में जीने के लिए यही तीनों आधार है। यही सूत्र है, परिवार में, समाज में, व्यवस्था में, व्यवसाय में, प्रकृति में सब जगह इस आचरण को व्याख्यायित करने पर, लागू करने पर मानवीय संविधान हमें करतलगत हुई। मानवीय आचरण ही है जो राष्ट्रीय चरित्र के रूप में वैभवित हो सकता है। विगत में धार्मिक राजनीति, आर्थिक राजनीति के बारे में हम सोच चुके हैं वह भी पराभवित हो चुकी। अपने को कहीं न कहीं विकल्प को खोजना ही पड़ेगा। इसका प्रस्ताव यही है कि राष्ट्रीय चरित्र का आधार बिन्दु मानवीयता पूर्ण आचरण ही होगा। इसको समझने में मनुष्य को किसी भी देश काल में कोई परेशानी नहीं होगी। मानवीयता पूर्ण आचरण सुख एक बार आस्वादन करने की जरूरत है। इस प्रकार मानवीयतापूर्ण आचरण, मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान की हम व्याख्या देते हैं, वही समाजशास्त्र के रूप में हमें प्राप्त हो जाता है। शिक्षा में मानवीयता पूर्ण समाज शास्त्र को लाने की जरूरत है। मानव कैसे समझदार होगा, मानवीयतापूर्ण मानव क्या वैभव है। मानवीयता पूर्ण मानव परिवार में, समाज में, व्यवस्था में कैसे जीता है यह पूरा समाजशास्त्र है इसको अलग से अध्ययन करने की जरूरत है। मनुष्य बहुत अच्छे ढंग से वर्तमान में विश्वास रखते हुए जी पाता है। अस्तित्व न घटता है न बढ़ता है इस रूप में परम सत्य के रूप में अस्तित्व को पहचान सकते हैं। सत्ता में संपृक्त प्रकृति ही अस्तित्व है।
वर्तमान कभी भी नष्ट होने वाला नहीं है। हम अपनी बुद्धि से वर्तमान से असंतुष्ट है क्योंकि व्यवस्था में जी नहीं पाते फलस्वरूप विगत में जाते हैं जिससे कुंठित हो जाते हैं पीड़ित होते हैं। भविष्य में जाते है कुंठित होते हैं, पीड़ित होते हैं। अस्तित्व में अव्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। अस्तित्व संपूर्ण व्यवस्था ही है। मानव जब कोई भी वस्तु बनाता है तो वह बिगड़ता ही है। जैसे यंत्र बनाता है तो बिगड़ता ही है, घर बनता है खराब होता ही है। पर वस्तु का नाश नहीं होता है। इसलिए घर बिगड़ा पुनः बना लिया। हमारे पास श्रम नियोजन के लिए वस्तु है