जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
त्यागकर तीसरे तरह का आचरण बनाना यह रासायनिक उर्मि है। रासायनिक उर्मिवश ही तमाम प्रकार की प्राणावस्था की वस्तुएं निर्मित हुई हैं। रासायनिक वस्तु से प्राण कोशा, प्राण सूत्र, रचना विधि तीनों अपने आप में संपन्न होती है। इसमें संसार के किसी इंजीनियर, डाक्टर, बुद्धिमान आदमी का योगदान नहीं है। इससे पता लगता है कि अस्तित्व में विकासक्रम की सीढ़ियाँ लगी ही हुई है। मानव भी विकासक्रम में एक सीढ़ी है। ये हम, आपको समझ में आता है। यदि मानव अपने ही क्रमानुसार, क्रियानुसार, विचारानुसार व्यवस्था में जी नहीं पाता है तो मानव के जीने के अनुकूल यह धरती रह नहीं जायेगी तो मानव समाप्त हो जायेगा। किन्तु बाकी यथावत बनी रहेगी भौतिक रासायनिक वस्तुएं वैसी ही रहेगी मानव जाति विदा हो जायेगी। अस्तित्व में कोई हानि लाभ होता नहीं। अर्थात् अस्तित्व न घटता है न बढ़ता है। अस्तित्व में चारों अवस्थाएं निरंतर बना ही रहता है यह अस्तित्व सहज क्रिया है। चारों अवस्थाएं इस धरती पर नहीं होगा तो अन्य धरती पर होगा। अगर मानव इस धरती को मानव के न रहने लायक बनाने को ही विकास समझता है तो इससे अच्छा अक्ल का पत्थर क्या हो सकता है। अधिकतर लोग इस प्रकार के अड़चन पैदा करने वाले मनुष्य, देश, समुदाय को विकसित मानते हैं। इसमें भी सोचने का मुद्दा है। जहाँ हम पहुँचे हैं यह बात तो उजागर हो गयी कि अपने ही करतूतों से हम फंस चुके हैं। फंसने के बाद छूटने की आवश्यकता है। इसका प्रस्ताव आपके सम्मुख आ चुका है। इस पर विचार करने की आवश्यकता है। आपकी सौजन्यता इसका आधार है। मनुष्य स्वयंस्फूर्त विधि से शुभ, अशुभ प्रवृत्तियों में दौड़ता है। शुभ प्रवृत्ति की ओर रास्ता न होने से अशुभ प्रवृत्ति की ओर दौड़ता है। शुभ की ओर दौड़ने का प्रस्ताव है उसे जांचने की जरूरत है, रास्ता पहचानने की आवश्यकता है।
पहला - मानवीय चरित्र एक ही होता है चाहे आदमी कैसा भी हो। मानवीय चरित्र का स्वरूप - स्वधन, स्वनारी/स्वपुरूष, दयापूर्ण कार्य व्यवहार के रूप में होता है।
दूसरा - मूल्य बहते हैं संबंधों की पहचान से। संबंधों की पहचान, मूल्यांकन, उभयतृप्ति मिलने पर मूल्यों का निर्वाह हुआ ऐसा हम समझा हूँ।