जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

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परिवार में, हर आदमी में, हर बच्चे में समझदारी का सूत्र देना ही शिक्षा संस्कार व्यवस्था है। इसे समझदारी का लोकव्यापीकरण करना भी कह सकते हैं। पहले आपको बताया दर्शन; दर्शन के बाद विचार; विचार के बाद शास्त्र; शास्त्र के बाद योजना। योजना में एक है जीवन विद्या योजना जिसमें मानव परिवार मानव चेतना सम्पन्न होने के लिए पूरी गुंजाईश है। इस समझ से आदमी परिवार में व्यवस्था के रूप में जी सकता है।

दूसरी योजना है मानवीय शिक्षा-संस्कार का मानवीकरण। इसमें बच्चों के लिए शिक्षा व्यवस्था है। ऐसी शिक्षा को हम एक स्कूल में (बिजनौर, उ.प्र.) प्रयोग किये। यह पाँच वर्ष का अनुभव है। जीवन विद्या के आधार पर शिक्षा का मानवीकरण करने गये उसका क्या प्रभाव पड़ा वहाँ देखा गया। लोग कहते रहे हैं कि विद्यार्थियों के ऊपर वातावरण का प्रभाव पड़ता है जिसे हम नकारते रहे। यदि वातावरण का प्रभाव पड़ता तो हम अनुसंधान कैसे कर पाते? इस स्कूल से यह प्रमाण मिलने लगा है कि बच्चों का प्रभाव परिवार पर एवं उनके परिवार वालों का प्रभाव वातावरण पर पड़ने लगा है। बच्चे जीवन के रूप में अपने को पहचानने लगे और व्यवस्था में जीना अति आवश्यक है इसे स्वीकारने लगे। इसके फलस्वरूप बहुत से बच्चे टी.वी., व्यर्थ वार्तालाप आदि में अरूचि दिखाये जाने वाले चीजों का मूल्यांकन करने लगे और यह सब निस्सार है ऐसा समझने लगे। साथ ही गाँव में एक परिवार में दूसरे परिवार के साथ बैर-भाव था, मारपीट, मुकदमा होता था। वह भी धीरे-धीरे शमन होने लगा। अब उन गाँवों में मेरी जानकारी के अनुसार झगड़ा-झंझट कम हो गया है। इसी को हम कहते हैं बच्चों का आचरण रूपी वातावरण का प्रभाव पड़ा और इसी के अनुसार हम कहते हैं कि इस शिक्षा में दम-खम है।

शिक्षा के मानवीकरण में हम विज्ञान के साथ चैतन्य पक्ष का अध्ययन करायेंगे। चैतन्य पक्ष का अध्ययन का मतलब है जीवन। जीवन का, जीवन जागृति का अध्ययन करायेंगे। रासायनिक-भौतिक रचना-विरचना का अध्ययन करायेंगे। मानव के लिए रचना-विरचना में पूरकता तथा मानव इस संसार के लिए कैसे पूरक, कैसे उपयोगी होगा, यह सब अध्ययन करायेंगे। इसके साथ ही विकल्पात्मक दर्शनशास्त्र में क्रिया पक्ष का अध्ययन करायेंगे। क्रिया पक्ष का अर्थ है मानव की समझदारी के