जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
कृतज्ञता के पश्चात स्नेह, प्रेम, विश्वास सार्थक होता है। ऐसा कोई आदमी नहीं मिलता जिससे कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में सहायता न मिली हो। सबकी सहायता के साथ आदमी बड़ा होता है, समर्थ बनता है और प्रमाणित हो जाता है। इस क्रम में जितने भी संबंध है (सात संबंध) उनमें मूल्य ही मूल्यांकित होने पर संबंधों की निरंतरता होती है। संबंधों में मूल्य मूल्यांकित न होने पर संबंधों की निरंतरता होती नहीं है। सामान्य क्रम में भी जिनको हम अपना संबंधी मानते हैं उनके साथ अच्छे ढंग से प्रस्तुत होते ही हैं। परंपरागत ढंग से हम संबंधों को बल, धन, बुद्धि, आयु के आधार पर पहचानते हैं। जबकि संबंध पहले अभ्युदय के अर्थ में है, दूसरे पोषण के अर्थ में है, तीसरे संरक्षण के अर्थ में है, चौथे उपयोगिता पूरकता के अर्थ में, पाँचवें सदुपयोगिता के अर्थ में, छठवें प्रयोजन के अर्थ में। संबंधों के लिए सर्वोपरि वरीयता प्रमाणिकता के अर्थ में है। प्रमाण के आधार पर हर कोई संतुष्ट होता है। मूल्य जीवन सहज रूप में उद्गमित होते हैं। जैसे : हम और आप जब मिलते हैं तो स्वाभाविक रूप से मूल्य बहने से हमारे आपके बीच विश्वास मूल्य शुरू हो जाता है। इस विधि से हम संबंधों में मूल्यों को पहचानने, मूल्यांकन करने और उभय तृप्ति पाने में सक्षम हो जाते हैं। इससे बड़ा लाभ क्या हो गया? अभी तक भय और प्रलोभन के आधार पर संबंधों को पहचानते रहे; उसके स्थान पर मूल्य और मूल्यांकन समाधान समृद्धि की स्थिति में आ जाते हैं। भय और प्रलोभन कोई मूल्य ही नहीं है तो मूल्यांकित क्या होगा? भय के साथ प्रलोभन, प्रलोभन के साथ भय, थोड़ी देर के लिये चुप होने वाली बात है। रोग तो वहीं का वहीं रहता है। न्यायालयों में भी न्याय की बात पूरी हुई नहीं क्योंकि भय और प्रलोभन न्याय का आधार हो ही नहीं सकता। शताब्दियों से भय और प्रलोभन के आधार पर ही एक-दूसरे को राजी करते रहे हैं। पर अभी तक कोई व्यवस्था दे ही नहीं पाये। हम इस बात पर सहमत हो पाते हैं कि भय और प्रलोभन कोई मूल्य नहीं है और न ही संबंधों में मूल्यांकित हो पाते हैं।
मानव अभी तक मूल्यों के पास गया ही नहीं। मूल्यों के पास गया होता तो मूल्य अभिव्यक्त होता, मूल्य प्रमाणित होता, मूल्यांकित होता और स्वाभाविक रूप में न्याय होता। न्यायालयों में फैसला होता है न्याय नहीं। इन फैसलों से एक पक्ष भयवश एक पक्ष प्रलोभनवश सहमत होता है। उभयतृप्ति इसमें कभी हुआ नहीं, हो