जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

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उसके बाद तीसरा एक प्रबंध लिखा है “अनुभवात्मक अध्यात्मवाद”। अभी तक अध्यात्म जिसको संसार मानता रहा उसको समझाने में असमर्थ रहा। अध्यात्म को हम आसानी से चंद क्षणों में ही समझ सकते हैं। आप हमारे बीच जो रिक्तता है, दिखाई देता है, उसी को विस्तार और शून्य कुछ भी कह सकते हैं। ये रिक्तता जो आप व हमारे बीच है वैसे ही इस धरती और दूसरी धरती के बीच में है। एक सौर व्यूह दूसरा सौर व्यूह के बीच ऐसी ही रिक्तता है। एक आकाश गंगा दूसरी आकाश गंगा के बीच भी वैसा ही है। तो ये विस्तार सब जगह एक सा है। इतना ज्ञात होता है कि ये वस्तु व्यापक है। व्यापक वस्तु में समस्त एक-एक वस्तु (इकाईयाँ) डूबी, भीगी, घिरी हैं। इसी का अनुभव आदमी को सबसे पहले होता है। उसके बाद आदमी को स्वयं के होने का अनुभव होता है। आपके हमारे बीच यह व्यापक न हो तो आपका अनुभव मुझको हो ही नहीं सकता। इसलिए सर्वप्रथम जो भी अनुभव होता है व्यापक में ही होता है। इसी को स्पष्ट करने की कोशिश की है। इसकी जरूरत के बारे में भी प्रकाश डालने की कोशिश की है। अस्तित्व को समझे बिना अस्तित्व के ही एक भाग के रूप में जो मानव जाति है वह अपने को कैसे समझेगा। इसलिए अस्तित्व को समझना बहुत जरूरी है। व्यापक वस्तु में ही संपूर्ण एक-एक वस्तु है यह स्वयं सहअस्तित्व की गवाही है। तो अस्तित्व सहज सहअस्तित्व को हम यदि भुलावा देते हैं सिवाए संकट के, दुख के और कुछ होता ही नहीं है।

अभी तक हम जितने भी द्रोह, विद्रोह, शोषण, युद्ध किए हैं ये सब सहअस्तित्ववाद के विरोधी है। ये सब करने के बाद हम सही चीज को पाने की इच्छा किए, उम्मीद किए। हमारा उम्मीद पूरा हुआ नहीं और जैसा किए वैसी ही घटनाएं सामने आते रहीं। हम कभी हंसते भी रहे कभी रोते भी रहे। जैसे कोई परिवार, समुदाय दूसरे किसी को मार डालता है और बड़े खुश होते हैं कि हमारे शत्रु को मार दिया। सरकार भी, देश भी ऐसे ही सोचता है। अब क्या किया जाए? धर्मगद्दी भी ऐसे ही बनता है। अब किसकी शरण में जाए मानव। इस तरह धर्मगद्दी, राजगद्दी, शिक्षागद्दी, व्यापार गद्दी सभी जगह भ्रम ही भ्रम मिलता है न कोई दिशा है न कोई प्रयोजन। अब हम कहाँ जायें? क्या करें? ये परेशानियाँ थी। ये सब परेशानियाँ जागृति के पूर्व मुझमें भी थी। जागृति उपरान्त हम बहुत अच्छी ढंग से इस तथ्य