जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
मध्यस्थ जीवन इस चारों बातों को चार तथ्यों को समझने समझाने का कार्य किया है इसी का नाम है - “मध्यस्थ दर्शन”।
सहअस्तित्ववाद को जब हम स्पष्ट करने के लिए तीन स्वरूप में तीन शीर्षक में तैयार हुआ। पहला – “समाधानात्मक भौतिकवाद” । इसका ध्रुव बिन्दु है :- पूरा का पूरा भौतिकता और रासायनिकता ये अपने में ‘त्व’ सहित व्यवस्था के रूप में प्रकाशित है। समग्र व्यवस्था में ये भागीदारी करते ही हैं। चैतन्य प्रकृति के साथ भी पूरक हैं। जड़ प्रकृति, जड़ प्रकृति के साथ भी भागीदारी करते हैं। इसको स्पष्ट करने की कोशिश की है। अभी मानव के पास जो भी वाद हैं वो संघर्षात्मक अर्थात् द्वंद्वात्मक भौतिकवाद है। जबकि सहअस्तित्व सहज स्थिति-गति में कोई झगड़ा नहीं है, विद्रोह नहीं है, छीना, झपटी नहीं है, एक दूसरे के लिए पूरक हैं, एक उत्सव है, एक खुशियाली है, निरंतर विकास है, इस बात को समझाने की कोशिश की है। वांङ्गमय तो वांङ्गमय ही है। किन्तु आदमी, आदमी से ही समझेगा मेरे अनुसार। वांङ्गमय में तो कोशिश ही हो सकती है। इसमें मूल मुद्दा ये है विज्ञान सम्मत विवेक; विवेक सम्मत विज्ञान विधि से तर्क को प्रस्तुत किया है। विवेक का तात्पर्य है प्रयोजन की पहचान। प्रयोजन यदि समझ में आता है, उसकी पहचान हो जाती है तो उसका विश्लेषण हम करेंगे। प्रयोजन समझ में नहीं आता है तो हम विश्लेषण करते जाएं क्या बनता जाता है वह आपको भी समझ में आता है। विज्ञान ने आज आदमी को जहाँ ले जाकर बैठाया है, या फंसाया है वो आप स्वयं मूल्यांकन कर सकते हैं। तो समाधानात्मक भौतिकवाद के अनुसार अस्तित्व में जो भी पदार्थ हैं भौतिक और रासायनिक रूप में हैं ये मानव को व्यवस्था में जीने के लिए प्रेरक हैं और समग्र इकाईयां एक दूसरे के लिए पूरक हैं, वैभव के लिए सहायक हैं और आगे के विकास के लिए एक दूसरे से अंतर्संबंध से जुड़े हैं। इस ढंग से समाधान बताया गया है।
सहअस्तित्ववाद का दूसरा प्रबंध का नाम दिया :- “व्यवहारात्मक जनवाद” मानव जो है अस्तित्व में है। व्यवहार पूर्वक ही संतुष्ट होने की जगह है। व्यवहार मानव, मानव के साथ करता है। मानव का व्यवहार मानवीयता पूर्ण आचरण के रूप में स्पष्ट हो जाता है और इसी को स्पष्ट करने की कोशिश की है।