जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

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की लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई से बहुत दूर-दूर तक फैलने वाली चीजें है। इसी प्रकार हर मानव में वह योग्यता है हर मानव में वह अरमान है, हर मानव में समझदारी के अर्थ में उत्साह जगाया जा सकता है यह इस प्रस्ताव का अर्थ है, प्रयोजन है।

विज्ञान अपने में एक सीढ़ी है, उससे पहले की सीढ़ी आदर्शवाद है, उससे पहले की सीढ़ी ग्राम कबीला संसार है, उससे पहली सीढ़ी जंगलों में भटकता हुआ आदमी, शिलायुग है। इस ढंग से सीढ़ी दर सीढ़ी हम यहाँ तक पहुँचे। इस उपकार को अपने को स्वीकारना चाहिए और इसके लिए कृतज्ञ हैं। इस पृष्ठभूमि का सामान्य उपक्रम आपको बताया। सार संक्षेप में परंपरा ने जो उच्चकोटि की चीज हमको प्रस्तुत की उसमें हम संतुष्ट नहीं हुए। फलस्वरूप हम अपने को एक जिम्मेदार व्यक्ति माना। मेरे प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने की जिम्मेदारी मेरी है ऐसा स्वीकार किया। फलस्वरूप प्रयत्न किया और कोई बात के लिए हम प्रयत्न नहीं किये। इस वैचारिक प्रयत्न में हम अंत में यह पाया कि सभी मानव सुखी हो सकता है, धर्म सफल हो सकता है धरती स्वर्ग हो सकती है, मानव देवता हो सकता है इसलिये हमारी इच्छा हुई, उत्साह बना कि इस बात को मानव कुल के सम्मुख प्रस्तुत किया जाए उसी प्रयत्न में हम चल रहे हैं।

जब मैं अस्तित्व, जीवन और मानवीयतापूर्ण आचरण को भली प्रकार से समझा उसके तुरंत बाद ही मुझमें एक ऐसी स्थिति बनी जिसको अभी आपके सम्मुख रखने जा रहा हूँ। समझदारी के बाद अपने आप में विश्वास बना। इसके लिए कोई प्रयास या बहुत परिश्रम किया ऐसा कुछ नहीं। विश्वास को मैंने हर आयामों में जांचना भी शुरु किया। इसी भांति श्रेष्ठता का सम्मान करना भी बन गया। श्रेष्ठता का मूल्यांकन करना बन गया फलस्वरूप सम्मान करना बनता ही है। जिसका हम मूल्यांकन नहीं करते उसका सम्मान कर नहीं पायेंगे। तीसरा मुद्दा ये बना जो कुछ भी हमारी समझदारी थी उसके अनुसार हमारे व्यक्तित्व को पूरा का पूरा एक सुविधाजनक विधि से हम झेलने योग्य बन गये। मुझे कहीं भी ऐसी कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई कि प्रतिभा के अनुसार, अस्तित्व सहज, जीवन सहज विधि से मैं जी नहीं पाऊंगा। इसका नाम दिया प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन। इसमें हम सही सच्चा उतर गए। चौथी स्थिति आई व्यवहार में सामाजिक हो गया।