जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
क्या है? इन बातों को शास्त्रों में स्पष्ट किया है। इसके बाद इसको क्रियान्वयन करने के लिए योजनाएं आई। योजनाएं तीन स्वरूप में आई।
पहली योजना है - जीवन विद्या योजना। आदिकाल से मानव स्वयं के प्रति अज्ञानी बना रहा। आदर्श युग में भी आत्मा-परमात्मा नाम की चीजों को बहुत उपदेश रूप में समझाने की कोशिश किया, किन्तु समझा नहीं पाये। ये जो स्वयं के प्रति अनभिज्ञता है यही आदमी को ज्यादा परेशान किये हैं। यदि ये समझ में आ जाये तो आगे की जो बात है वह समझ में आयेगी ही। इसी कठिनाई को दूर करने के लिए जीवन विद्या योजना है। इस योजना का केन्द्र बिन्दु जीवन है। जो बच्चे-बूढ़े सभी मानवों में समान रूप से समझने का अधिकार विद्यमान है। मानव की समानता का आधार जीवन ही है। शरीर किसी भी दो मानव के एक समान होते नहीं है। जीवन समान है, जीवन की शक्तियाँ व बल समान है, जीवन का लक्ष्य समान है। जीवन जागृत होना चाहता है, जागृति ही इसका (जीवन का) लक्ष्य है। हर व्यक्ति समाधान को पाना चाहता है, हर व्यक्ति, न्याय चाहता है। आप सब इस बात को जाँच सकते हैं। आपका कोई अंग अवयव ऐसा नहीं है जिसमें न्याय की प्रतीक्षा हो, न्याय को चाहता हो। शरीर का कोई अंग समाधान को चाहता हो। उसी प्रकार शरीर का कोई अंग अवयव नहीं है जो समृद्धि चाहता हो, जबकि मानव न्याय, समाधान, समृद्धि चाहता ही है। अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि न्याय, समाधान, समृद्धि, सत्य यह सब जीवन की ही चाहत है क्योंकि जीवन और शरीर के रूप में मानव है। अतः जीवन के स्वरूप को समझा जाये जीवन की क्रियाओं को समझा जाये, जीवन तृप्त होने के लिये न्याय, धर्म, सत्य को समझा जाये यही छोटा सा काम इसमें से निकला है। इसी के आधार पर जीवन विद्या योजना प्रस्तुत किये हैं। उसे कार्ययोजना में परिणीत किया। विज्ञान के दिग्गज तथा विज्ञान नहीं जानने वाले ज्ञानी-अज्ञानी सभी इसे सुने हैं कुछ लोग समझ गये हैं और दूसरों को समझाने में लग गये हैं और समझाने में सफल हो गये हैं। तब हमें विश्वास हुआ कि जो हम समझे हैं वह सार्थक है और प्रमाणित है, इसे सब समझ सकते हैं और समझ कर समझा सकते हैं।