जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

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दूसरी योजना है- शिक्षा का मानवीकरण। समझदार होना सबकी आवश्यकता है ही। इसलिये समझदारी की सारी वस्तुओं को शिक्षा में समावेश किया जाये। उसके लिये पाठ्यक्रम बनाया गया, स्कूल में प्रयोग किया गया। वह स्कूल है बिजनौर जिले के गोविन्दपुर में। वहाँ पर एक बहुत अच्छा अनुभव हुआ। पहले सारे शिक्षाविद् यह बोलते रहे कि विद्यार्थियों पर वातावरण का प्रभाव पड़ता है। पर गोविन्दपुर में अनुभव किया गया कि विद्यार्थियों का प्रभाव वातावरण पर पड़ता है। इसको विशाल रूप में देखने का अरमान है उसके लिये प्रयत्न जारी है। तीसरी योजना है- परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था। शक्ति केन्द्रित शासन के स्थान पर समाधान केन्द्रित व्यवस्था। इस तरह से दर्शन, शास्त्र, और योजनाएं निस्पंदित होती है।

जय हो, मंगल हो, कल्याण हो।

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जीवन विद्या

जीवन को मैं समझा हूँ, आपको समझाने का प्रयास यहाँ से शुरू होता है। इस प्रक्रिया का नाम “जीवन विद्या” है। पहले आपको स्पष्ट करना चाहते हैं जीवन में समानता नित्य विद्यमान है। जीवन क्या चीज है इस बात को हर व्यक्ति जानना, मानना चाहता है और उसके फल-परिणामों को प्रमाणित करना चाहता है यह इसका मूल उद्देश्य है। ‘जीवन’ न भौतिक है न अभौतिक है। ‘जीवन’ परमाणु है, गठनपूर्ण परमाणु चैतन्य इकाई है। गठनपूर्णता क्या है? इस परमाणु में न तो विस्थापन होता है और न ही प्रस्थापन होता है। जबकि भौतिक रासायनिक रूप में जो भी परमाणु है उनमें समाहित अंशों में प्रस्थापन-विस्थापन होना पाया जाता है इसे ही हम “परिणाम” कहते हैं। परमाणु में निहित अंशों की संख्या में परिवर्तन होता है। वही परिवर्तन है और कोई परिवर्तन संसार में होता ही नहीं है। आदमी जब भी कोई परिवर्तन करा सकेगा तो परिणामशील परमाणुओं के अंशों में परिवर्तन ही करा पायेगा। इन परमाणुओं की दो प्रजातियाँ होती है - एक भूखा