जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
आपके द्वारा हम लोगों ने सुना है व्यवहारात्मक जनवाद; इसके द्वारा आप मानव मानव के बीच खड़ी होने वाली समस्याओं, विसंगतियों को दूर करके समाधान तक पहुँचाया जा सकता है ऐसा आपने बार-बार कहने की कोशिश की है। इसके स्वरूप को स्पष्ट करके समझाइए।
उत्तर :- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की परिकल्पना है कि जो कुछ भी काम चल रहा है खींचतान से चल रहा है। इसको व्यवहारिक रूप में ऐसे देखा जा सकता है ; आपके बल का प्रयोग मेरे साथ होता है मेरे बल का प्रयोग आपके साथ होता है इसलिए दोनों का कार्य चलता है ऐसा सोचा जाता रहा। दोनों का विकास होता है अथवा एक का नाश होता है एवं एक का विकास होता है ऐसा सोचा जाता रहा। इसी आधार पर जो बलवान होता है वही रहने योग्य वस्तु है। बलहीन रहने योग्य वस्तु नहीं है ऐसा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के अनुसार माना जाता है। मैने देखा है अस्तित्व में कोई खींचातानी नहीं है, एक दूसरे का बल संपन्न होने की स्थिति को मैंने देखा है, एक परमाणु अंश भी बल सम्पन्न है, परमाणु भी बल सम्पन्न है, अणु, अणु पिण्ड सभी बल सम्पन्न हैं। ये एक दूसरे के साथ आदान-प्रदान के रूप में पूरकता विधि को संपन्न करने योग्य हैं, फलस्वरूप विकास है। अस्तित्व को समझकर के तो ये द्वंद्वात्मक भौतिकवाद लिखा नहीं जा सकता। बुद्धि का सटीक प्रयोग न होने के फल में ही हम ऐसा सब कुछ सोच लेते हैं, हम रहेंगे बाकि सब मिटेगा, हमारा धर्म रहेगा बाकी सभी धर्मों का नाश होगा। हम धरती पर रहेंगे, राज करेंगे बाकि सबका नाश हो जायेगा। ऐसा हल्ला, दंगा, नारा प्रतिदिन सुनने को मिलता है ये सब शेखचिल्ली की कथाएं हैं। इनसे कोई निश्चित दिशा, लक्ष्य नहीं पायें हैं और ना ही पायेंगे। दिशा एवं लक्ष्य निश्चित होने पर ही निश्चित कार्यक्रम की बारी आती है, ये मैंने देखा है। इसको मैं अध्ययन करता हूं, जो अध्ययन करना चाहते हैं उसको सटीक अध्ययन कराते हैं। ये हमारा प्रतिदिन का कार्य है, इससे हम आप पर कोई बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं ऐसा भी नहीं है हमारा ये काम है, जैसे हवा का काम, अपना करता ही है, पानी अपना काम करता ही है ऐसा ही मेरा काम है, मैं अपना काम करता हूँ। मुझमें दृढ़ विश्वास है अभी तक हम जितने दिन जितने क्षण जितना कार्य कर पाया इसी अवधारणा और इसी उद्देश्य को लेकर किया हूँ। इसमें मुझे हर मोड़, मुद्दा, कार्य व्यवहार, हमारा