जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

Back to Books
Page 10

मरने के बाद भी जीवन अस्तित्व में है और शरीर चलाते समय भी जीवन अस्तित्व में है। कोयला जलाने के बाद भी रहता है विभिन्न स्वरूपों में। ये भौतिक-रसायन शास्त्री इस बात को समझे भी होंगे। नहीं समझें होंगे तो सबको समझना ही होगा, मजबूरी है। इस ढंग से ‘समझदारी’ समझ में आती है। मूलतः ‘वस्तु’ का नाश नहीं होता। उसी आधार पर मैंने मंगल कामना की है कि भूमि यदि स्वस्थ रहेगी, मानव यदि व्यवस्था में जी सकता है यही सार्वभौमिक नित्य मंगल होने का आधार है। इस विधि से जो मंगल कामना मेरे मन में उपजी उसके समर्थन में पूरे अस्तित्व में मानवीयता पूर्ण आचरण ही एक प्रधान मुद्दा है। इससे बड़ा उपकार यह होगा धरती को बिना घायल किये, बिना पेट फाड़े, बिना बर्बाद किए मानव चिरकाल तक इस धरती पर रह सकता है इसकी भी विधि इसी समझदारी से आती है। यदि धरती स्वयं संभल पाती है।

आज तक के बीते इतिहास में मानव कुछ भी अप्रत्याशित घटना घटित किया है वो सारी घटनाएं नासमझी से ही घटित हुई है। अभी धरती को जितना घायल करने की बात हुई, धरती का पेट फाड़ा गया, धरती को बुखार उत्पन्न किया, धरती की सतह पर अनेक प्रकार की विकृतियाँ तैयार की। उसके फलस्वरूप नदी, नाला ये सब बर्बाद हो गये, हवा पानी को बर्बाद कर दिए और इससे जो आदमी त्रस्त हो रहे हैं ये हम आप सबको विदित ही है। जब तक धरती कष्टग्रस्त रहेगी तब तक धरती में रहने वाले समस्त वनस्पति, समस्त जीव, और मानव सभी कष्टग्रस्त होंगे ही। धरती को घायल करके आदमी स्वस्थ रहे, सुखी रहे इसकी परिकल्पना कितने अच्छे सोच किए होंगे आप ही सोच लीजिएगा। अब इससे आगे की शुभ बात यह निकलती है कि यदि हम धरती को तंग करना बंद कर देते हैं तो आश्वस्त होने का मुद्दा है कि इस धरती की सतह में जो सम्पदाएं हैं वे अपने आप में इस धरती के आदमियों के जीने के लिए पूरी पड़ती है। गलती, अपराध, द्रोह, विद्रोह ये सब चीज मानव की नासमझी का दोष है। ये समझदारी की उपज नहीं है इसकी गवाही यही है मानव असंतुलित, धरती असंतुलित, नदी-नाला, पहाड़, जंगल सब असंतुलित है। हम मानव विज्ञान युग में यह सब अपराध कर चुके हैं उसके बाद भी डींग हाँकने में बाज नहीं आए और सोचते हैं हम विज्ञान से ही अच्छा ठोस पायेंगे जबकि धरती से ये मानव जाति कूच होने की जगह पर आ गयी है। इस