जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

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आती है, शायद नियति यही रही हो। पहले रहस्यमयी याने आदर्शवाद के बीच आदमी को आना पड़ा, स्वीकारना पड़ा इससे जो राहत मिला वह मानव को पर्याप्त नहीं हुआ। पुनः भौतिकवाद के शिकंजे में आ गये। इसमें भी जो राहत मिला वह सुख, समृद्धि के अर्थ में पर्याप्त नहीं हुआ। आज जो दर्द है यह उसकी बात है। दोनों जगह से हम पूर्ण राहत नहीं पाये, स्वाभाविक है तीसरी आगे सीढ़ी की जरूरत है।

इस ढंग से जो उत्तर पाए बंधन और मोक्ष उसका उत्तर यह बना - मानव समझदार होता है तो बंधन से मुक्ति पा जाता है अब समझदार हो कैसे? इसके लिए जब देखी हुई बात को मैंने देखा कि मुझमें क्या भ्रम है? ‘मुझमें’ मैं शोध किया, ‘मुझमें’ मैं जाँचा तब पता लगा कि हमारे पास बंधन का कारण कुछ भी नहीं दिखता; तो यही स्थिति क्यों न सबमें पैदा की जाए। सबमें पैदा करने पर कैसा लगेगा? तब जैसा आपको पहले सुनाया था। भूमि स्वर्ग हो जाएगी, मानव देवता हो जाएगा, सभी धर्म सफल हो जाएगा, नित्य शुभ ही शुभ होगा। परंपरा के रूप में नित्य शुभ होगा। इसमें अपने को हम फिर जांचने लगे क्या हम यह सब संप्रेषित कर पायेंगे? क्या इसकी लोगों को जरूरत है या नहीं?

ये सब उसके बाद शुरु हुआ। तो मुख्य मुद्दा जिससे मैं अपने में आश्वस्त हुआ कि संविधान में मानवीय आचरण रूपी मानवीय आचार संहिता को समावेश कर सकते हैं। जिससे मानवीय राष्ट्रीय चरित्र प्रमाणित होगा। इस जगह में हम निश्चित हूँ। मैं स्वयं पारंगत हूँ और प्रमाण भी हूँ। अस्तित्वमुझको समझ में आया है आपको समझा देंगे और जीवनमुझे समझ में आया है और आपको समझा देंगे। मानवीयता पूर्ण आचरणमुझको समझ में आया है आपको समझा देंगे। यदि ये तीनों तथ्य समझ में आता है, माने हम समझदार हो गए। समझदार होने पर क्या हो गए? समझदार होने से बंधन मुक्त हो गए। कैसा बंधन? भ्रम रूपी बंधन से मुक्त हो गये। पहले बुजुर्गों ने क्या बताया आवागमन से मुक्ति होगी। आवागमन से मुक्ति का कोई ताल्लुकात नहीं है। न कोई गया है न कोई आएगा। जो है सब अस्तित्व में है।