जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

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में एक भी कदम बढ़ाते हैं उसी मुहूर्त में सम्पूर्ण शाप, ताप, पाप तीनों ध्वस्त हो जाता है। इनका कोई कलंक नहीं रह जाता। वह कैसे इसका उत्तर गणितीय विधि से इस प्रकार दिया। जैसे हम गणित को हजार बार गलत किए रहते हैं किन्तु जब सही करना आ जाता है तो जीवन भर के लिए सही हो जाता है। जब तक गलती करते रहते हैं तब तक एक बार जो गलती करते हैं दुबारा वो गलती करते ही नहीं, दूसरी गलती ही करते हैं। उसको भी हम घटना के रूप में देख सकते हैं यदि करोड़ बच्चों के लिए गणित का प्रश्न दिया जाए; सही उत्तर देते हैं तो सबका एक ही होता है। गलत होते हैं तो करोड़ होता है। हर सामान्य व्यक्ति भी इसका सर्वेक्षण कर सकता है। इस ढंग से हम एक और सूत्र पा गये। हम मानव सही में एक हैं गलती में अनेक।

जब अस्तित्व को देखा; महिमा सम्पन्न एक सूत्र हमको मिला। अस्तित्व में दो ही प्रजाति की वस्तुएँ हैं। पहली एक-एक के रूप में जिन्हें गिन सकते हैं जिसको प्रकृति कहा जा सकता है। दूसरा जो सर्वत्र फैला हुआ है इसको हर व्यक्ति एक क्षण में समझ सकता है। प्रत्येक एक-एक वस्तु इस दूसरी वस्तु में भीगा है, घिरा है, डूबा है। इसे व्यापक कह सकते हैं। एक-एक वस्तु (इकाईयाँ) दो प्रजाति की है - एक जड़, दूसरा चैतन्य। चैतन्य वस्तु का मतलब है - जीव कोटि, मानव कोटि और जड़ वस्तु का मतलब है - पदार्थावस्था, प्राणावस्था। इसमें सभी खनिज, मिट्टी, धातु तथा प्राण कोशाओं से बनने, बिगड़ने वाली वस्तु हैं। ये जितने भी वस्तुएं हैं व्यापक वस्तु में भीगी ही है, घिरी ही है, और डूबी ही है इसको मैंने सटीकता से देखा है। व्यापक वस्तु से एक-एक वस्तु अलग होने का अस्तित्व में कोई प्रावधान नहीं है। अस्तित्व में जिसका प्रावधान नहीं है मानव उसे पैदा नहीं कर सकता।

अस्तित्व में जो भी प्रावधान है उसकी उपयोगिता को छोड़कर दुरूपयोगिता की ओर मानव कुछ भी उपलब्धि करता है तो सिवाए बर्बादी के और कुछ हाथ लगता नहीं है। जैसे- युद्ध के लिए हमने बहुत सारी चीज उपयोग किया इससे धरती और मानव को बरबाद करने के अलावा दूसरा हम कुछ नहीं कर पाए। शायद यह सारे वैज्ञानिकों को धीरे-धीरे समझ में आ रहा है। यदि यह पहले समझ में आ जाता तो मानव समृद्ध व सुखी हो सकते थे। अनेक घाट-घाट के बाद नदी समुद्र में