जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
है। साधनाकाल में मानव को तमाम प्रकार की ऊटपटांग बात आती है समाधि के बाद उनका शमन होता है। विकल्प विधि से अध्ययन, पारंगत, प्रमाण विधि है।
समाधि के बाद मानव को कुछ करने की इच्छा होती ही नहीं, कुछ पाने की इच्छा होती ही नहीं, कुछ रखने की इच्छा होती ही नहीं ये भी बात देखी गयी है। तो हमको कैसे इच्छा हुई ये सब तैयार करने के लिए। मैं आपको पहले ही विनय कर चुका हूँ कि मैं मुक्ति के लिए, स्वर्ग के लिए तो समाधि किया नहीं था मैं मेरे प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए समाधि के लिए प्रवृत्त हुआ था। समाधि में प्रश्नों का उत्तर मिला नहीं तो मुझे समाधि हुई या नहीं इस बात को जांचना शुरु किया। इसी जांच में ये सब चीजें समझ में आ गयी। मानव के पुण्यवश, मानव के भविष्यवश, मानव के सर्वशुभवश, सर्वकल्याणवश ये बात निकल के आ गई। ये किताबों से नहीं निकला है। ये सच्चाई है। बुजुर्गों ने हमको इतना ही मार्गदर्शन किया था कि समाधि से ही उत्तर मिलेगा। समाधि मुझको हुआ या नहीं, इसको प्रमाणित करने के लिए हमने संयम किया और उसी के बलबूते ये बातें निकल आई। मानव की समझदारी तरंगवत है। पहले जंगलयुग में, शिलायुग में और धातु युग में जैसा मानव जिया ये सब इतिहास में लिखा हुआ है। जैसे ही राजयुग आया तो काफी लोगों ने राहत पाया। राजा जानमाल की रक्षा करेगा जबकि वो चीज अभी तक हुआ नहीं। जान माल की रक्षा हुई नहीं है अमन चैन तो बहुत दूर है।
हर परिवार, हर समुदाय जान-माल की रक्षा और अमन चैन के लिए चिंतित रहता ही है। इसी तरह आदर्शवादी सीढ़ी लगी है उससे लोगों को जो कुछ भी राहत मिली और कुछ काल के बाद वह भी पर्याप्त नहीं हुआ। पुनः जब अपर्याप्त हुआ तो स्वाभाविक था पुनः विचार किया। विचार के रूप में विज्ञानवाद आया। इसमें तर्कसम्मत रूपी खूबी के कारण लोगों को यह स्वीकृत हुआ। पहले उपदेशवाद में तर्क की कोई गुंजाइश नहीं थी। आदर्शवाद में करो, ना करो वाली बात में न मानने वाले लोगों को पापी करार देते रहे जितना प्रताड़ित करना है वो भी करते रहे। ये सब इतिहास में लिखा है। तर्कसंगत और तर्क के लिए आमंत्रण होने के कारण मानव ने विज्ञानवाद को स्वीकार किया।