अर्थशास्त्र
by A Nagraj
कर पाता है। उसी क्षण से विद्रोह रूप में परिणत होता है। ऐसे सभी विद्रोह पुन: शासन प्रतिष्ठा दिशा-वाही होना देखा गया है। इसी विधि से शासन परिवर्तन की घटनाएँ इस धरती के छाती पर गुजर चुकी है। इससे यह स्पष्ट हो चुकी है कि शक्ति केन्द्रित शासन और शासन संघर्ष परिवर्तन के लिए विद्रोह यह सभी प्रक्रियाएँ मानसिकताएँ शक्ति केन्द्रित शासन के धारा से ही दिशा से ही विवश है। अतएव विद्रोह का विकल्प भी सार्वभौम व्यवस्था ऐसी व्यवस्था में भागीदारी की मानसिकता विचार प्रक्रिया ही है। ऐसी मानसिकता जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन, मानवीयतापूर्ण आचरण में प्रतिबद्धता पूर्वक प्रमाणित होती है।
शोषण का सम्पूर्ण स्वरूप धरती का ही शोषण है। धरती में खनिज, वन, वन्य प्राणी और मानव ही शोषित होने का वस्तु है। उल्लेखनीय तथ्य है कि इसमें से मानव शोषित भी होता है एवं शोषण करता भी है। मानव इकाई में से कुछ लोग जिनको ज्यादा शक्तिशाली कहा जाता है, वे ही शोषण करने वालों की संख्या में गण्य है। अन्य सभी शोषित होते हैं। आदिकाल से यह आंकलित तथ्य है कि शक्ति केन्द्रित शासन ही इसका मूल तत्व है और ऐसे शासनाधिकार प्राप्त मुट्ठी भर लोग ही इसके धारक-वाहक है। यही धारक-वाहक शक्ति केन्द्रित शासन को सर्वोपरि होने की मान्यता के आधार पर शोषण कार्य को बुलंद करते जाते हैं। इसको देखने पर पता चलता है कि शासन अपने स्वरूप में जड़ रूप में एक वांङ्गमय के रूप में सभी राज्यों का संविधान दिखाई पड़ती है। यह गलती को गलती से, अपराध को अपराध से और युद्ध को युद्ध से रोकने के आशय सम्पन्न होना सर्वविदित है। दूसरे भाषा से इसी तत्व को इस प्रकार से कह सकते हैं कि गलती, अपराध और युद्ध को रोकना राज्य के लिए सर्वोपरि आवश्यकता और सम्मान है। इसलिए सभी संविधान शक्ति केन्द्रित शासन के ध्वनि में लिप्त है। इसी क्रम में अधिकारों का बंटवारा, केन्द्रीय अधिकार से सूत्रित रहने के क्रम में शासन-व्यवस्था का ताना-बाना का होना देखा गया है। इस प्रकार शासन मानसिकता शक्ति प्रयोग अधिकार सम्पन्नता के साथ ही अधिकारी व्यक्तियों को देखने को मिलता है। इस विधि से अर्थात् शक्ति प्रयोग विधि से प्रताड़ित क्षुब्ध जन मानस में विद्रोहवादी उर्मियाँ अथवा प्रवृत्तियाँ प्रवाहित होना देखा गया है। यही संघर्ष का मूल तत्व है। यह वंशानुषंगीय एकाधिकार प्राप्त राजा के रूप में शासन अर्थात् शक्ति केन्द्रित शासन में और बहुमत प्राप्त अथवा जनादेश प्राप्त जन-प्रतिनिधियों के हाथों शक्ति केन्द्रित