अर्थशास्त्र
by A Nagraj
सर्वविदित है कोई भी अनुसंधान-अध्ययन विधि पूर्वक प्रस्तुत होने पर शिक्षा संस्थाओं के माध्यम से लोकव्यापीकरण की आशा की जाती है। अध्ययनकारी विधि को इस प्रकार सोचा गया है कि तर्क संगत प्रणाली सत्य समझ में आने के विधि, संगीतीकरण की अपेक्षा अभी तक की अध्यवसायिक मन:पटल में आ चुकी है। यह भी मान्यता है सत्य है। सत्य क्या है? इसका उत्तर अभी तक शोध के गर्भ में ही निहित है। अतएव विकल्प के रूप में अस्तित्वमूलक, मानव केन्द्रित चिंतन प्रस्ताव के रूप में मानव सम्मुख प्रस्तुत हुआ है।
अर्थशास्त्र विधा में आवर्तनशीलता स्वयं में श्रम नियोजन और श्रम विनिमय प्रणाली, पद्धति, नीति है। श्रम नियोजन और श्रम विनिमय साधारणतया समझ में आने वाल तथ्य यह है कि श्रम का अपना स्वरूप जीवन शक्ति रूपी मन और तन का संयुक्त रूप में स्थिति में पाई जाती है। यह स्वाभाविक रूप में जीवन शक्ति रूपी तकनीकी अर्थात् निपुणता, कुशलता, पाण्डित्य का नियोजन कार्य प्रणाली है। सम्पूर्ण निपुणता, कुशलता आशा, विचार इच्छा रूपी जीवन क्रियाकलापों का वैभव अथवा महिमा के रूप में विद्यमान रहना पाया जाता है। चित्त में से आवश्यकता के आधार पर चित्रण कार्यकलाप सहित विश्लेषण सम्मत विधि से कुशलता निपुणताएँ मन में विद्यमान रहते हैं। प्रत्येक क्रिया में उपयोगिता को स्थापित करने के लिए और सुन्दरता को स्थापित करने के लिए मूलत: चित्रण हर मानव के चित्त में उभर आना सहज है। यह तो पहले से ही हमें विदित है जागृत जीवन सहज पाँचों बल और पाँचों शक्तियाँ अक्षय रूप में कार्यरत रहते हैं। इनके नित्य कार्यरत रहने में अस्तित्व में कोई बाधक तत्व नहीं है। अपितु अस्तित्व में हर वस्तु जीवन शक्तियों के अक्षय कार्यकलाप के लिए अनुकूल रूप में ही विद्यमान रहते हैं। जैसे जागृत जीवन सहज कल्पना का अवरोधक तत्व कुछ भी नहीं है और अनुकूल तत्व सब जगह में है। अनुकूलता इस प्रकार से प्रमाणित होता है कि सभी शुभ कल्पनाएँ जागृतिपूर्वक सफल होना पाया जाता है। अजागृति पर्यन्त प्रमाणित होना संभव नहीं होता है। जैसे समृद्धि की कल्पना हर व्यक्ति में, हर परिवार में, हर समुदाय में निहित रहना पाया जाता है। यह आवश्यकता से अधिक उत्पादन कार्य से ही सफल होने की सत्यता में जागृत होने के उपरांत ही, समृद्धि सफल होता है। किसी मुद्दे में जागृति का दूसरा बिन्दु हर मानव समृद्धि का इच्छुक है। अनुभव करना चाहता है। जबकि समृद्धि जागृत मानव परिवार में ही हो पाता है। एक परिवार समृद्ध