अर्थशास्त्र
by A Nagraj
पर साधना क्रियाकलाप के उपदेशों की भरमार होती रही। आस्थाओं में भीगी हुई मानसिकताएँ अधिकांश रूप में युद्ध को नकारता रहा। द्रोह-विद्रोह-शोषण को अपराधी कार्य मानता रहा। ऐसे मानसिकता के लोग सदा ही बर्बरता से अर्थात् आक्रमण से, आक्रमणकारी रूख से दूर रहने की कोशिश करते रहे। फिर भी युद्ध घटना को नकार नहीं पाया। उसे एक भावी मानकर ही चलना पड़ा। इसमें संस्कृतियाँ विशेषकर आस्था, उपासना और अभ्यासपरक रही है। इनकी सभ्यताएँ आस्था और सेवा के आधार पर जन्मते आया। यह भी शनै:-शनै: वस्तु और वस्तुओं के विपुलता की ओर दिशागामी रहे। आस्थावाद भी अथवा अध्यात्मवाद भी समुदाय, श्रेष्ठता, अंतर्विरोध जैसी जकड़न में जकड़ते ही आया। ये साहित्य कला को भक्ति और विरक्ति प्रवृत्ति के आधार पर सर्जन किए। इसी भक्ति और विरक्ति में अभिभूत होने के लिए भक्ति रसोत्पादी मुद्रा, भंगिमा, भाषा, भाव, अंगहार क्रमों से संप्रेषणा विधाओं को परिकल्पित प्रदर्शित किए। यही क्रम से श्रृंगार, हास्यवादी रसों में चलकर वीर और वीभत्स विधाओं में पहुँच पाए। जो भौतिकवादी विधा से आद्यंत कला-साहित्य रहा। इस प्रकार अध्यात्मवादी चरित्र जो भक्ति और विरक्ति का छापा लेकर चली वह अपने कलाविधा में पहुँचकर यथास्थिति और व्यवहारिक प्रासंगिता अर्थात् यथास्थिति में जो व्यवहार गुजरी उसकी प्रासंगिकता को स्वीकारते हुए परिवर्तनों को स्वीकार लिए। ऐसे परिवर्तन सदा-सदा भय और प्रलोभन की ओर झुकता ही गया। भक्ति प्रदर्शन में भी भय और प्रलोभन का पुट रहा है। इस प्रकार मानव सभ्यता और संस्कृति अंततोगत्वा भय-प्रलोभन में डुबता ही रहा। विधि, व्यवस्थाएँ, भय और प्रलोभन से ही स्थापित रहा। क्योंकि सभी समुदायों, सभी देश, सभी राज्यों में भय और प्रलोभन का ही बोलबाला रहा।
प्रौद्योगिकी विधा से गुजरता हुआ आज का मानव भय-प्रलोभन के स्थान पर न्याय की आवश्यकता पर ध्यान देने योग्य हुआ। क्योंकि प्रौद्योगिकीय कार्यवाही क्रम में समृद्ध, संतुलित धरती का शक्ल बिगड़ गयी। युद्ध संबंधी आतंक परस्पर समुदायों में पहले से ही रहा। उसी के साथ-साथ धरती और धरती के वातावरण संबंधी असंतुलन का भय और धीरे-धीरे गहराता जा रहा है। इसी के साथ-साथ जनसंख्या बहुलता, मानव चरित्र और प्रौद्योगिकी के योगफल में अनेकानेक रोग और विपदाओं का सामना करता हुआ वर्तमान में मानव कुछ प्रतिशत विद्वान, मनीषी विकल्प के पक्षधर हैं या आवश्यकता को अनुभव करते हैं। इसी बेला में विकल्प की सम्भावना समीचीन हो गया। ये तो