अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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आधार भी होना पाया जाता है। जिससे उपर कहे शास्त्रों का पुष्टि होना देखा गया है। इस विचार के मूल में ही अनुभव रूपी दर्शन का महिमा देखा गया है जिसको इंगित करने के लिए, हृदयंगम करने के लिए मध्यस्थ दर्शन सहज रूप में ही मध्यस्थ सत्ता, मध्यस्थ क्रिया, मध्यस्थ जीवन का प्रतिपादन के रूप में व्यवहार दर्शन, कर्म दर्शन, अभ्यास दर्शन और अनुभव दर्शन के रूप में समीचीन हुई अर्थात् उपलब्ध हो गई है। इस प्रकार परम सत्य को जानने-मानने के लिए दर्शन, उसे तर्कसंगत अर्थात् विज्ञान सम्मत विवेक, विवेक सम्मत विज्ञान विधि से संप्रेषित करने के लिए विचार, सत्यमयता को तर्कसंगत विचार प्रणाली पूर्वक व्यवहार विधा में अर्थात् परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में प्रमाणित करने के क्रम में शास्त्रों का होना मानव परंपरा सहज आकांक्षा, आवश्यकता और उपलब्धियाँ हैं। इस प्रकार परम सत्य रूप में सहअस्तित्व है। अस्तित्व में मानव भी एक अविभाज्य इकाई है। इसी विधि से यह भी हम पाते हैं अस्तित्व में प्रत्येक एक अपने ‘त्व’ सहित व्यवस्था के रूप में होना सत्य है। इन्हीं दो (परम सत्य और सत्य) तथ्यों के आधार पर प्रत्येक एक का लक्ष्य आचरण और प्रमाण ही केवल व्यवस्था सहज आधार होना पाया जाता है। इस नजरिया से मानव मानवत्व सहित जीने की कला क्रम में, दूसरे भाषा से मानवत्व सहित प्रमाणित होने के क्रम में, सत्य को समझना परमावश्यक रहा है यही जागृति सहज प्रमाण हैं। अस्तित्व न तो रहस्य है न ही दुरुह-जटिल है। अस्तित्व को सत्ता में संपृक्त प्रकृति के रूप में हर व्यक्ति समझने योग्य है और अस्तित्व ही सहअस्तित्व होने के कारण पदार्थ, प्राण, जीव अवस्था के साथ-साथ ज्ञानावस्था में स्वयं को पहचान पाना सहज है। सहअस्तित्व में ही व्यवस्था सर्वत्र-सर्वदा वैभवित है।

मानव अपने परंपरा में व्यवस्था के रूप में जीने के लिए जागृत होना एक अनिवार्यता आवश्यकता बनी रही। परंपरा के रूप में जागृति का तात्पर्य सत्य परंपरा में प्रवाहित रहने से ही है। मानव परंपरा में सत्य प्रवाहित रहने का प्रमाण शिक्षा में परम-सत्य रूपी अस्तित्व ही सहअस्तित्व के रूप में व्याख्यायित होना और बोध अनिवार्य रहा। इसी के फलस्वरूप मानवीय संस्कार को परंपरा के रूप में वहन करना स्वाभाविक है। मानवीय शिक्षा संस्कार की परिणति ही परिवारमूलक स्वराज्य व्यवस्था और मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान सहज ही प्रवाहित होता है। इसीलिए शिक्षा संस्कार में सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान को परम दर्शन के रूप में, जीवन ज्ञान को परम ज्ञान के रूप