अर्थशास्त्र
by A Nagraj
जाता है। मानव संबंध बोध विधि से ही मूल्य निर्वाह और मूल्यांकन, चरित्र और नैतिकतापूर्वक सम्पन्न होना मानव में ही देखा जाता है। इसी सत्यतावश आवर्तनशील अर्थव्यवस्था स्वाभाविक रूप में सार्थक होता है। मूल्य, चरित्र और नैतिकता क्रम में सर्वमानव वैभवित होना चाहता ही है। सफल होने में अभी तक जो अड़चन थी वह केवल व्यक्तिवादी एवं समुदाय चेतना, सामुदायिक श्रेष्ठता का भ्रम। फलस्वरूप समुदाय, वर्ग संघर्ष, प्राकृतिक देन-ईश्वरीय देन मान लेना ही रहा। अभी यह सौभाग्य समीचीन हो गया है कि मानव मानवीयता को सार्वभौम आचरण के रूप में पहचानना-निर्वाह करना, जानना और मानना सहज हो गया है। अतएव आवर्तनशील स्वरूप, कार्य और प्रयोजन को समझना और उसे प्रमाणित करना आवश्यक है ही। आवर्तनशीलता का स्वरूप मूलत: विभिन्न आयामों में, विभिन्न मूल्यों के आधार पर ही प्रयोजित होना पाया जाता है। जैसे सहअस्तित्व में जीवन मूल्य, मानव मूल्य आवर्तित होता है। प्रामाणिकता सहज विधि से जीवन मूल्य सफल होता हुआ देखा गया है। सार्वभौम व्यवस्था क्रम में मानव मूल्य सहज सार्थक होना स्पष्ट है और अखण्ड समाज में भागीदारी स्वयं समाज मूल्य यथा स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य, उपयोगिता मूल्य, कला मूल्य आवर्तनशील होना पाया जाता है। इसमें से उत्पादनपूर्वक यथा निपुणता, कुशलतापूर्ण जीवन शक्तियों को हस्त लाघव सहित (शरीर के द्वारा) प्राकृतिक ऐश्वर्य पर स्थापित करने की क्रियाकलाप को उत्पादन कार्य नाम है। यह प्रसिद्ध है। सबको विदित है। ऐसे उत्पादित वस्तुओं को दूसरे से उत्पादित किया गया वस्तु को पाने के क्रम में हस्तांतरित कर लेना अर्थात् लेन-देन कर लेना मानव कुल में एक आवश्यकता है। यही मूलत: विनिमय के नाम से जाना जाता है। ऐसे विनिमय कार्य उत्पादन के लिए जो कुछ भी शक्तियों का नियोजन कर पाए वही वस्तुओं में उपयोगिता और कला मूल्य के रूप में पहचानने में आती है।
उपयोगिता और कला मूल्य का मूल्यांकन होना सहज है। इसी मूल्यांकन क्रिया को श्रम मूल्य का नाम दिया। उत्पादन क्रम में अनेक वस्तुएं होना पाया जाता है। यह महत्वाकांक्षा और सामान्य आकांक्षा के रूप में वर्गीकृत है। इनमें से सामान्य आकांक्षा संबंधी किसी वस्तु का उसमें भी किसी एक आहार वस्तु का मूल्यांकन सर्वप्रथम करना आवश्यक है। इस क्रिया को इस प्रकार किया जा सकता है कि जैसे गेहूँ को एक गाँव में कई परिस्थितियों में बोया जाता है। उत्पादन भी विभिन्न तादादों में होता है। उसका सामान्यीकरण उत्पादन तादातों के मध्य बिन्दु में सामान्य मूल्य रूप होना सहज है।