अर्थशास्त्र
by A Nagraj
लगता है कि ज्ञानेन्द्रियाँ ही कर्मेन्द्रियों को नियंत्रित करता है। यही हस्तलाघव का तात्पर्य है। हस्तलाघव का फलन कार्य व्यवहार, विन्यासों में चित्रित हो पाती है जैसे एक लेखक लिखता हुआ, एक शिल्पकार शिल्पिभित्ति को निर्मित करता हुआ, चित्रकार चित्र भित्ति को स्पष्ट करता हुआ, एक उत्पादक अपने उत्पादन कार्य को संपादित करता हुए, एक कृषक कृषि कार्य को सम्पादित करता हुआ देखने को मिलता है। इसी क्रम में मानव को गृह कार्य, अतिथि, आगन्तुक आदि स्थितियों में देखने को मिलता है। यह कार्य हर स्थिति मानव परंपरा में से यही प्रमाणित होता है कि ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ही कर्मेन्द्रियों को जीवन नियंत्रित करता हुआ कार्यकुशलता निपुणता और पाण्डित्य सभ्यता को प्रमाणित कर देता है अथवा प्रमाणित करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। जागृति पूर्वक प्रमाणित होना सहज है। जागृति पर्यन्त प्रयत्नशील रहना स्वाभाविक है। इस प्रकार श्रम नियोजन शिष्टता, सभ्यता संबंधी संपूर्ण विन्यास ज्ञानेन्द्रियों-कर्मेन्द्रियों का संयुक्त कार्यकलापों में देखा जाता है। ज्ञानेन्द्रियों का नियंत्रण आशा, विचार, इच्छा, ऋतम्भरा और प्रमाण जैसी अक्षय शक्तियों से सम्पन्न होता हुआ देखने को मिलता है। आशा, विचार, इच्छा, ऋतम्भरा व प्रमाण शक्तियाँ क्रम से चयन, विश्लेषण, चित्रण, संकल्प और प्रामाणिकताएं सम्प्रेषित हो पाता है यही परावर्तन में क्रम से आस्वादन, तुलन, चिंतन, बोध और अनुभव प्रत्यावर्तन के रूप में कार्य करता हुआ स्पष्ट होता है। यह क्रियाकलाप को आत्मा अनुभव के रूप में, बुद्धि बोध के रूप में, चित्त चिंतन के रूप में, वृत्ति तुलन के रूप में और मन आस्वादन के रूप में जीवन सहज अक्षय बल को प्रमाणित करते हैं। यही मानव में होने वाला मौलिक क्रियाकलाप है। इसी के आधार पर आवश्यकता और संभावना, संपूर्ण शास्त्र को प्रमाणित करने के लिए हर व्यक्ति समीचीन है। इसके लिए नित्य स्रोत सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व अनुभूत प्रमाण ही है।
अस्तित्व में ही यह धरती अविभाज्य है। इस धरती में ही मानव अविभाज्य है। संपूर्ण मानव का उत्पादन कार्य स्रोत इस धरती में ही विद्यमान पदार्थ, प्राण, जीवावस्था सहज वस्तुएं इन्हीं में कहीं श्रम नियोजन करने का अवसर हर व्यक्ति में, से, के लिए रहता ही है। यह धरती अपने वातावरण सहित सम्पूर्ण होना पाया जाता है क्योंकि यह धरती सभी ओर से विभिन्न प्रकार के विरल वस्तुओं से घिरा रहना पाया जाता है। जहाँ तक ऐसे विरल वस्तुएं इस धरती के सभी ओर घिरे हुए है वहाँ तक इस धरती का वातावरण