अर्थशास्त्र
by A Nagraj
विधियों से ज्ञान तंत्रणा पूर्वक कर्म तंत्रणा सम्पन्न करता है। ज्ञान तंत्रणा को हम ज्ञानेन्द्रियों में पहचान सकते हैं। ज्ञानेन्द्रियाँ शब्द स्पर्श, रूप, रस, गंधात्मक साक्ष्यों सहित प्रमाणित है। इन्हीं क्रियाओं के साथ ही मानव को जीवंत रहना प्रमाणित होता है। इन क्रियाओं के लुप्त होने के उपरान्त ही मरणासन्न या मृत हो जाता है। इसमें मुख्य तथ्य यही है मेधस से जीवन में जुड़ी हुई ज्ञान तंत्रणा जब तक बनी रहती है अथवा सम्पादित हो पाती है तब तक शरीर यात्रा की सार्थकता मूल्यांकित होती है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि जीवन शक्तियाँ ज्ञान तंत्रणा पूर्वक परावर्तित होते हैं। यही परावर्तन व्यवहार, उत्पादन और उपयोग क्रियाकलापों में साक्षित होता है। जीवन शक्तियों का परावर्तन क्रियाकलापों में से उत्पादन कार्य भी एक आयाम होना पाया जाता है। उत्पादन कार्य में मानसिकतापूर्वक श्रम नियोजन होना स्पष्ट है। श्रम नियोजन का आधारभूत वस्तुएं प्राकृतिक ऐश्वर्य ही है। इस प्रकार प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन का स्वरूप ही उत्पादन का स्वरूप प्रदान करता है। सभी उत्पादन में उपयोगिता मूल्य और कला मूल्य मूल्यांकित हो पाता है। ऐसी श्रम का मूल स्रोत जीवन शक्ति ही होना स्पष्ट हो चुकी है। ऐसे जीवन शक्तियां प्रत्यावर्तन में समृद्धि का अनुभव करना ही उद्देश्य है। हर मानव समृद्ध होना चाहता है। इसकी संभावना सहज है। इसका स्वरूप स्वायत्त मानव और परिवार मानव के रूप में क्रियान्वयन होता है। फलस्वरूप परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना सहज हो जाता है और परिवार के सभी सदस्य समाधान के साथ समृद्धि का अनुभव करते हैं। समाधान समृद्धि संतुष्टि का स्रोत है और इसकी निरंतरता होती है।
मानव में किंवा स्वयं में इन तथ्यों को देखा गया है कि समृद्धि का स्वरूप आवश्यकता से अधिक उपयोगितावादी वस्तुओं का संप्राप्ति और उसका उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजनशीलता से स्पष्ट होता है। यह भी स्पष्ट है कि संपूर्ण मूल्यांकन आशा, विचार, इच्छा सहित ही न्याय रूप में हो जाता है। श्रम मूलक वस्तु, वस्तुमूलक उपयोगिता, उपयोगितामूलक मूल्यांकन यह वस्तुओं का मूल्य निर्धारण करने की विधि है और आशा, विचार, इच्छा के अनुसार शरीर संचालन फलत: उत्पादन कार्य में श्रम नियोजन होना स्पष्ट है। यद्यपि जीवन शक्तियों को आशा, विचार, इच्छा, ऋतम्भरा और प्रमाण के रूप में आँकलित होना पाया जाता है। ज्ञानेन्द्रियों के सह सान्निध्य में ही कर्मेन्द्रियों का क्रियाकलाप सार्थक रूप में कार्य करता हुआ देखने को मिलता है। इससे यह भी पता