अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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परिवार में आवश्यकताएं सीमित हो जाती है क्योंकि उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजनशीलता निश्चित होता है। फलस्वरूप आवश्कता से अधिक उत्पादन हर परिवार में संभव है।

मानवीयतापूर्ण अनेक परिवार परस्पर उपकार सहयोग विधि से व्यक्ति स्वायत्तता और परिवार स्वायत्तता सहित ग्राम मुहल्ला स्वायत्तता के रूप में प्रमाणित होना मानवीयता पूर्ण परिवार विधि से सहज है। एक ग्राम में 100 परिवार की कल्पना के रूप में एक इकाई के रूप में पहचाना जा सकता है। हरेक परिवार में 10-10 व्यक्तियों के रूप में जनसंख्या स्पष्ट होती है। धरती-वायु-जल-वन-खनिज ही श्रम नियोजन स्थली है। प्रत्येक गाँव के आहार-आवास-अलंकार रूपी वस्तुओं का तादात गुणवत्ता निश्चित हो जाता है। इसी के साथ-साथ औषधि संबंधी आवश्यकता और उसका आंकलन भी निश्चित होती है। इसी के आधार पर 100 परिवार में उत्पादन कार्यों का परस्पर वितरण भी संभव है। सर्वाधिक आहार उसके बाद अलंकार और औषधि; इसके बाद आवास और आवास रचना के लिए आवश्यक वस्तुओं के निर्माण कार्यों को कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग पूर्वक संपन्न कर लेने की स्थिति को और कृषि, गोपालन विधियों से पूरे गाँव की आवश्यकता से अधिक उत्पादन होना सहज है। जिस गाँव में कोई विशेष उत्पादन नहीं हो पाता है उसको अन्य स्रोतों से उत्पादन जो अधिक है उसे देकर वांछित वस्तुओं को पा लेना भी बहुत सहज है ऐसी स्थिति में आवर्तनशीलता पुन: सहवास और संबंध विधि से स्पष्ट हो जाता है।

पूरे गाँव में आवर्तनशीलता को इस प्रकार पहचानना आवश्यक और सहज है कि प्रत्येक परिवार समूचे ग्राम परिवारों के साथ एक दूसरे को किसी संबंध से पहचानते हैं, मूल्यों का निर्वाह करते हैं मूल्यांकन करते हैं। सदा तृप्ति मिलती ही रहती है। दूसरा श्रम मूल्यों के आधार पर वस्तु मूल्यों का मूल्य निर्धारित करते हैं और परस्पर विनिमय करते हैं। हर परिवार में आवश्कता से अधिक उत्पादन कार्य स्पष्ट रहता ही है। इस प्रकार वस्तुओं का उत्पादन, विनिमय और न्याय-सुरक्षा कार्यकलाप एक दूसरे से पूरक विधि से आवर्तनशील होते हैं। क्योंकि श्रम नियोजन, श्रम मूल्य में सामरस्यता, संबंध और मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य में सामरस्यता और उसका नित्य गति के रूप में व्यवहार और विनिमय एक-दूसरे के लिए पूरक होते हैं और नित्य गतिशील रहते हैं इस प्रकार इसकी आवर्तनशीलता समझ में आती है।