अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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के लिए अर्थात् जीवन के लिए, उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजनों के रूप में साक्षात्कार होता है। यही अर्थ सार्थकता है। जीवन शक्तियाँ श्रम नियोजनपूर्वक उपयोगिता मूल्य, कला मूल्य रूपी अर्थ को स्थापित करती हैं। यही वस्तु मूल्य का यथार्थ स्वरूप होने के रूप में मूल्यांकित हो जाता है। इसी आधार पर सदुपयोगिता, प्रयोजनीयता के निश्चित आधारों पर जीवन में संतुष्टियाँ शरीर पुष्टि उत्पादन में वस्तुओं का नियोजन रूपी उपयोगिता विधि से उपयोगिता का मूल्यांकन और उससे होने वाली तृप्ति समग्र व्यवस्था में जीने की कला समेत वस्तुओं का नियोजन वस्तु का परम प्रयोजन के रूप में मूल्यांकित होता है। इस प्रकार जीवन शक्तियों का परार्वतन विधि से प्राकृतिक वस्तुओं में उपयोगिता व कला मूल्यों की स्थापना और उसकी उपयोगिता, सदुपयोगिता, प्रयोजनीयता से तृप्ति और उसकी नित्य संभावना एक आवर्तनशील साक्ष्य है। इसे प्रत्येक मानव जीवन, शरीर और प्रकृति सहज नैसर्गिकता सहित प्रयोग कर सकता है। निरीक्षण-परीक्षण पूर्वक निष्कर्षों को सत्यापित और प्रमाणित कर सकता है। प्रत्येक मानव में तन-मन-धन रूपी अर्थ होता ही है। होना वर्तमान में, से, के लिए ही है। इनमें परस्पर पूरकता स्वयं आवर्तनशीलता का साक्ष्य है। मन से संचालित शरीर, मन और तन के संयुक्त प्रयोग से वस्तु मूल्यों का प्रकटन, पुन: वस्तु मूल्यों का शरीर के लिए उपयोगी, जीवन के लिए तृप्तिदायी होना एक आवर्तनशीलता है। यह प्रत्येक स्वायत्त मानव में प्रमाणित होना पाया जाता है। स्वायत्त मानव को स्वयं के प्रति विश्वास, श्रेष्ठता के प्रति सम्मान, प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन, व्यवसाय में स्वावलंबी, व्यवहार में सामाजिक रूप में होना पाया जाता है। स्वायत्त मानव ही परिवार मानव का स्वरूप है। ऐसे समझदार मानव एक से अधिक मानव लक्ष्य के अर्थ में सहवास विधि से जीना ही व्यवस्था का स्वरूप है। परिवार अपने में परस्पर संबंधों को निश्चित रूप में पहचानने मूल्यों को निर्वाह करने, मूल्यांकन पूर्वक परस्पर तृप्ति उभय तृप्ति पाने के रूप में देखा जाता है। ऐसे परिवार में अपनायी गई उत्पादन कार्य में स्वयं स्फूर्त विधि से परिवार का हर व्यक्ति पूरक होना पाया जाता है। फलत: परिवार की आवश्कता से अधिक वस्तुओं का उत्पादन हर परिवार में समीचीन रहता ही है। यह भी अर्थात् परिवार में उभयतृप्ति, उसकी निरंतरता और आवश्यकता से अधिक उत्पादन, उसका सदुपयोग और सुरक्षा, यह स्वयं में आवर्तनशील है। इससे स्पष्टतया समझ में आता है कि मानवीयता पूर्ण