अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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क्रिया होती है यह मूल्यों का साक्षात्कार क्रिया है। प्रत्येक इकाई में मूल्यों का होना मानव में मानव मूल्य, जीवों में जीव मूल्य, प्राणावस्था में प्राण मूल्य एवं पदार्थावस्था में पदार्थ मूल्य अक्षुण्ण रूप में रहता ही है। हर वस्तु और मानव की पहचान मूल्यों के आधार पर ही हो पाती है। जबकि प्रत्येक इकाई में रूप, गुण, स्वभाव, धर्म का अध्ययन है। स्वभाव और धर्म मूल्यों के रूप में स्पष्ट होते हैं। मूल्यों का मूल्यांकन करना ही चिंतन कार्य है। मानव मूल्य धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करूणा है, यही मानव की व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रूप में प्रमाणित होने का सूत्र है। यह स्वयं में परावर्तन, प्रत्यावर्तन के रूप में आवर्तनशील है। परावर्तन में मूल्यों की संप्रेषणा और प्रत्यावर्तन में मूल्यों का मूल्यांकन होना पाया जाता है। यह प्रत्येक परीक्षण, निरीक्षण पूर्वक प्रमाणित होता है। ये क्रियाकलाप भी अक्षुण्ण और अक्षय समझ में आता है क्योंकि कितना भी मूल्यांकन करें, कितना भी मूल्यों को संप्रेषित करें और मूल्यांकित संप्रेषित करने की जीवन सहज शक्तियाँ उद्गमित रहती ही है। इसलिए इनको अक्षय और अक्षुण्ण रूप में पहचानना मानव सहज है।

जीवन में बोध और ऋतंभरा क्रियाएं हर जागृत मानव में होना पाया जाता है। ये क्रियाएं जागृति की दूसरी सीढ़ी है। जागृति का पहला सीढ़ी चिंतन ही है, जिससे मूल्यों का पहचान हो पाता है फलत: मूल्यांकन सम्पन्न हो पाता है। इसलिए न्याय सुलभ होना भी सहज हो जाता है। पांचवे क्रियाकलाप में मूल्य, धर्म और सत्य बोध होना पाया जाता है अर्थात् सहअस्तित्व रूपी परम सत्य बोध, मानवीयता पूर्ण स्वभाव धर्म रूपी मूल्यों का बोध होना ही बोध का तात्पर्य है। ऐसे अनुभव व प्रमाण बोध के उपरान्त व्यवस्था में जीने, समग्र व्यवस्था में भागीदारी को निर्वाह करने का संकल्प होता है। बोध और संकल्प की महिमा ही है अस्तित्व सहज, वस्तु सहज, स्थिति सहज, गति सहज, विकास सहज, जागृति सहज सत्यता बोध और निर्वाह करने की निष्ठा, संकल्प के रूप में होता ही है। इस प्रकार जागृत जीवन मूल्यों का साक्षात्कार, बोध और संकल्प पूर्वक निष्ठापूर्ण कार्यप्रणाली मानव कुल में प्रमाणित होना ही परिवार व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी का प्रमाण है। कम से कम परिवार में व्यवस्था का स्वरूप, कार्य, प्रयोजन स्पष्ट होता है। व्यवस्था का स्वरूप संबंधों को पहचानने के रूप में, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन, उत्पादन कार्य में भागीदारी के रूप में स्पष्ट हो जाता है। प्रयोजन अपने आप में कार्य व्यवहार से ही स्पष्ट होना पाया जाता है वह समाधान और समृद्धि है। इस