अर्थशास्त्र
by A Nagraj
कल्पनाशीलता के अनन्तर प्रत्येक भ्रमित मानव चयन, आस्वादन करता हुआ देखने को मिलता है। चयन पहचान पूर्वक ग्रहण करने और उसका आस्वादन अपने ही इच्छापूर्ति के लिए सम्पन्न करता हुआ देखने को मिलता है। इससे पता लगता है कि चयन करने के अनन्तर आस्वादन, आस्वादन के अनन्तर पुन: चयन क्रिया आवर्तनशील विधि से सम्पन्न होता हुआ देखने को मिलता है। यह क्रिया कितना भी करें और करने के लिए यथावत् चयन-आस्वादन क्रिया उद्गमन बना ही रहता है। इसके साथ यह भी पता लगता है चयन आस्वादन करने का जीवन सहज शक्तियों का उद्गमन होता रहता है। तीसरे क्रम में प्रत्येक मानव में विश्लेषण और तुलन क्रियाएं सहज ही देखने को मिलती है। यह भी अक्षय रूप में होना प्रमाणित होती है अथवा समझ में आता है। विश्लेषण विधियों में अभी तक कितना भी किया है और विश्लेषण करने के लिए निरंतर प्रयास जारी है। इससे पता लगता है मानव में विश्लेषण क्रिया अक्षुण्ण और अक्षय है। इसी के साथ-साथ प्रियाप्रिय, हिताहित, लाभालाभात्मक, न्यायान्याय, धर्माधर्म, सत्यासत्यात्मक तुलन क्रियाओं को मानव ने सम्पन्न करने के क्रम में प्रयास किया है। जिसमें से प्रिय, हित लाभात्मक तुलनाएं निर्णायक बिन्दुओं तक अपने विवशता को फैलाया है। अभी भी न्यायान्याय, धर्माधर्म, सत्यासत्यात्मक तुलन परिशीलन क्रम में ही गुजर रहा है क्योंकि अभी तक तीन मुद्दों पर निर्णायक बिन्दु, स्वरूप और गति प्रयोजन मानव परंपरा में शेष है। इस तुलन क्रिया को कितना भी किया जाय और तुलन करने के लिए जीवन सहज शक्तियों का उद्गमन सदा ही बना रहता है। इस निरीक्षण, परीक्षण, सर्वेक्षण क्रिया से भी इसकी अक्षयता समझ में आता है।
मानव के अध्ययन क्रम में चित्रण और चिंतन जीवन सहज अक्षुण्ण क्रियाकलाप होना समझ में आता है। इस क्रिया में जो चित्रण क्रियाकलाप है यह जीवन में सम्पन्न होने के उपरान्त ही वाणी में और बाह्य चित्रण में उपस्थित होता है। इस तथ्य को अपने में प्रमाणित करना होता ही है और लोगों के प्रमाण के लिए दृष्टा भी बन पाता है। सहअस्तित्व में ही मानव का होना स्पष्ट है। सहअस्तित्व में अकेले कोई चीज होता नहीं है। संपूर्ण चीज होता है। सम्पूर्णता अपने सहअस्तित्व चारों अवस्थाओं के रूप में प्रकाशमान है। इसी यर्थाथतावश एक दूसरे पर प्रतिबिम्बन बना ही रहता है। इसलिए जीवन सहज कल्पनाशीलता, सहअस्तित्व सहज प्रतिबिम्बनों और मूल्यांकनों के योगफल में संपूर्ण चित्रण कार्य सम्पन्न होना पाया जाता है। इसी के साथ जो चिंतन