अर्थशास्त्र
by A Nagraj
विश्वास पूर्वक चलता है और पानी पीता है। वन, खनिज इन सबके स्वभाव के आधार पर निरंतर विश्वास करना पाया जाता है। दूसरी स्थिति में विश्वास पूर्वक ही इन सबके साथ कार्य, व्यवहार, विचार हम सब करते ही हैं। मानव के साथ मानव का विश्वास विधि भी मानवीय स्वभाव के आधार पर ही हम करते हैं। मानवीय स्वभावों में से विश्वास न्याय के अर्थ में परिशीलन हो जाता है। यही विश्वास जैसी वस्तु आँखों में आती नहीं, हाथों से छुआ नहीं जाता परन्तु समझ में आता है। सम्पूर्ण समझ चिंतन, बोध, संकल्प, अनुभव और प्रामाणिकता के रूप में वैभवित रहता ही है। इसमें से चिंतन, बोध, अनुभव जीवनगत गरिमा है और स्थिति है। प्रामाणिकता ऋतम्भरा ये महिमा है गति है। इस विधि से हमें स्वयं के प्रति निष्कर्ष यही समझदारी अर्थात् जानना-मानना-पहचानना-निर्वाह करने में पूर्ण जागृति ही हमारे तृप्ति का नित्य स्रोत है। निर्वाह करना ही अर्थात् समझा हुआ के अनुरूप निर्वाह करना ही ईमानदारी का परिभाषा है। समझे बिना जो कुछ निर्वाह किया जाता है भ्रम सिद्ध हो जाता है।
जानने-मानने में सम्पूर्ण मूल्य समझ में आता है। इसके तृप्ति बिन्दु में इसकी पूर्णता की स्वीकृति होती ही है। इसी अधिकारपूर्वक अर्थात् अनुभवपूर्वक अभ्युदय के अर्थ में व्यक्त होना प्रमाणित होता है। सम्पूर्ण मूल्यों का स्वरूप जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य और वस्तु मूल्यों के रूप में गण्य होता है। सुख, शांति, संतोष, आनन्द के रूप में जीवन मूल्य समझ में आता है। यह तभी प्रमाणित हो पाता है जब मानव ऊपर कहे गये दसों क्रिया रूपी जीवन को समझ लेता है। सुख का स्वरूप तुलन और विश्लेषण के साथ आस्वादन और चयन संतुलित होने की स्थिति में जागृति होने में आता है। इसे प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में समझ सकता है। इसी प्रकार चिंतन, चित्रण के साथ तुलन, विश्लेषण संतुलित होने की स्थिति में शांति समझ में आता है। बोध और ऋतंभरा के साथ चिंतन-चित्रण संतुलित होने की स्थिति में संतोष समझ में आता है। अनुभव और प्रामाणिकता के साथ बोध संकल्प रूपी ऋतम्भरा संतुलित होने की स्थिति में आनन्द समझ में आता है। इसमें सहजता यही है कि प्रत्येक मानव अपने में इन जीवन सहज क्रियाओं के साथ स्वयं से, स्वयं में, स्वयं के लिए परीक्षण-निरीक्षण पूर्वक सत्यापित करना बनता है। इस विधि से अस्तित्व सहज यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता को समझना संभव है। अस्तित्व ही परम सत्य वास्तविक और यथार्थ है। प्रत्येक एक अस्तित्व में अविभाज्य है।