अर्थशास्त्र
by A Nagraj
कारण दो स्वरूप में दिखाई पड़ती है (1) हर उत्पादन को स्वचालित बनाने का चक्कर और (2) उद्योगों का केन्द्रीयकरण प्रणाली का प्रयास। ये दोनों कारण पूँजी निवेश पर आधारित हैं। इसका आधार विशेषज्ञता है। इसी के साथ साथ जनशक्ति को अर्थात् श्रम शक्ति को खरीदने के क्रम में आ चुकी है। इन्हीं दो उपक्रमों ईंधन विकल्प के प्रति निष्ठा स्थापित करने में, होने में अड़चन बन बैठी है। स्वचालित उत्पादन कार्य तंत्र विधि से जितना मानव उत्पादन कार्य में लग रहा था वह कम होता गया। कुछ लोगों को जिन्हें नौकरी मिल जाती है, वे अपने को धन्य मान लेते हैं। बड़े उद्योगों के चलते यह संकट गहराता जाता है। जैसा एक ही प्रकार से शिक्षा ग्रहण किया हुआ एक आदमी को नौकरी मिल जाता है और एक आदमी को नौकरी नहीं मिलता है। नौकरी मिला हुआ अपने को धन्य मानता है, नहीं मिला हुआ अपने को बेकार मानता है, निरर्थक मानता है। ये सभी बातें सभी विद्वानों को पता है। यहाँ उल्लेख करने का यही तात्पर्य है कि इसकी विकल्प विधि को पहचानने की आवश्यकता पर बल देना ही रहा।
ईंधन कार्य विधि के लिए प्रवाह बल शक्ति को सर्वाधिक रूप में विद्युतीकरण कार्य के लिए उपयोग करना आवश्यक है। प्रपात शक्तियों को उपयोग करने की विधि प्रचलित हो चुकी है। केवल प्रवाह बल का उपयोग विधि को प्रचलित करना अब अति अनिवार्य हो चुकी है। इससे छोटे-बड़े विद्युतीकरण कार्य को संपादित किया जा सकता है। प्रवाह का अपार स्रोत आज भी धरती पर है। अतएव ऐसे स्रोत रहते ही इसका उपयेाग करना प्रदूषण विहीन विद्युत चुम्बकीय ताकत को पाना बन जाता है। इस क्रम में सूर्य उष्मा को भी विद्युतीकरण और ताप भट्टियों के लिए प्रयुक्त कर लेना उपयोगी है ही। इस ओर भी हमारा ध्यान लगा है। इसको समृद्ध बनाने की आवश्यकता और लोकव्यापीकरण करने की आवश्यकता है। इस क्रियाकलाप में ज्ञान व्यापार, धर्म व्यापार को त्याग देना आवश्यक है। इसे मानव का मानव सहज स्वत्व के रूप में पहचानने की आवश्यकता है क्योंकि एक मानव जो समझ सकता है उसे सभी मानव समझ सकते हैं इस तथ्य पर विश्वास करने की आवश्यकता है। इसी के आधार पर एक व्यक्ति जो पाता है उसे हर व्यक्ति पा सकता है। यह तभी संभव है जब ज्ञान और धर्म व्यापार को सर्वथा मानव त्याग दे और इस व्यापार के स्थान पर जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान यह जीवन जागृति रूपी सहज तथ्यों को लोक व्यापीकरण करने की अनिवार्यता, आवश्यकता को पहचानना हर मानव