अर्थशास्त्र
by A Nagraj
स्वाभाविक है। यह परिवारमूलक विधि से ही सर्वसुलभ हो पाता है। हर परिवार में आवश्यकता व उत्पादन, उपयोग, सदुपयोग, विनिमय ये सभी अवयव कार्य-व्यवहार के रूप में होना स्वाभाविक है। इन्हीं कार्य-व्यवहारों में समृद्धि का अनुभव एक लक्ष्य है। इसी लक्ष्य को प्रत्येक परिवार पाने के क्रम में निश्चित उत्पादन का योजना, स्वरूप स्थापित होता ही है। यही व्यवस्था का मूल तत्परता है। परिवारगत आवश्यकता से अधिक उत्पादन से ही समृद्धि का अनुभव होना स्वाभाविक है।
आवर्तनशीलता के स्वरूपों को सहज ही हम इस प्रकार देख सकते हैं कि उत्पादन के लिए आवश्यकता, आवश्यकता के अनुरूप मानसिकता जो निपुणता, कुशलता और पांडित्य सम्पन्न मानसिकता, स्वस्थ शरीर के द्वारा प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन पूर्वक वस्तुओं में कला मूल्य और उपयोगिता मूल्य की स्थापना, उपयोगिता मूल्य के अनुरूप उसका सदुपयोग, फलत: आवश्यकता की आपूर्ति, शेष का विनिमय। इस प्रकार समृद्धि का अनुभव सूत्र स्पष्ट होता है।
उत्पादन कार्यों के गति में जो ईंधनों को संयोजित किया जाता है इसमें आवर्तनशीलता को पहचानना अनिवार्य है। इन्हीं में जो कुछ भी अभी समीचीन प्रदूषण का संकट है इसमें मुख्य तत्व कोयला और खनिज तेल से मुक्त ईंधन विधि और प्रकाश विधियों को संजो लेना ही ईंधन संबंधी आवर्तनशीलता का तात्पर्य है। इसके मुख्य स्रोत का अधिकांश भाग मानव मानस में आ ही चुका है जैसा सूर्य ऊर्जा, प्रपात बल, हवा का दबाव, प्रवाह शक्ति पर, गोबर कचरा से उत्पन्न ईंधन। इन सभी ओर ध्यान जा ही रहा है कि खनिज कोयला और तेल के बाद क्या करेंगे? इसके उत्तर में सोचा गया है। खनिज कोयला और तेल से ही सर्वाधिक प्रदूषण है। इस आधार पर इसकी आवश्यकता धरती को है, इसी आधार पर विकल्प को पहचानने की आवश्यकता है। तब विकल्पात्मक स्रोतों के प्रति निष्ठा स्थापित होना सहज है। खनिज तेल और कोयला के अतिरिक्त और खतरनाक रूप में जो प्रदूषण आक्रमण कर रहा है वह विकिरणात्मक ईंधन प्रणाली है। ये तीनों धरती पर स्थित अन्न, वनस्पति, जीव और मानव प्रकृति के लिए सर्वाधिक हानिप्रद होना हम समझ चुके हैं। इसके बाद भी इन्हीं तीनों प्रकार के ईंधन की ओर सभी देशों का ध्यान आकर्षित रहना अभी तक देखा जा रहा है। इससे यही निष्कर्ष निकलता है विकल्प की ओर हमारी निष्ठा पूरा स्थापित नहीं हो पा रही है। इसके मूल