अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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अध्याय - 6

प्रमाण का आधार : मानव

प्रत्येक व्यक्ति जीवन्तता पूर्वक ही अपने को प्रमाणित करना चाहता है। प्रमाणित करने का संपूर्ण स्वरूप समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, और भागीदारी (कारीगिरी) ही है। कारीगिरी का स्वरूप व्यवहार-व्यवसाय (उत्पादन कार्य) और विनिमय के रूप में दृष्टव्य है। इसमें से व्यवहार कार्य ‘मानव जाति एक, कर्म अनेक; मानव धर्म एक, मत अनेक; धरती एक, मानव कृत सीमाएं अनेक; ईश्वर (सत्ता-व्यापक) एक, देवताएं (जागृतिपूर्ण जीवन) अनेक;’ होने, नित्य वर्तमान होने के आधारों और स्वीकृतियों के साथ मानव में, से, के लिए किये जाने वाले सम्पूर्ण (कायिक, वाचिक, मानसिक व कृत, कारित, अनुमोदित) व्यवहार मानवीयतापूर्ण होना पाया जाता है। यहाँ उल्लेखनीय बात यही है हर स्वायत्त मानव परिवार मानव होने, हर परिवार मानव समाधान, समृद्धि का धारक वाहक होता है। दूसरे विधि से हर परिवार मानव व्यवस्था में भागीदार होने के प्रमाण (समाधान, समृद्धि) को प्रमाणित करता है। फलस्वरूप तन, मन, धन रूपी अर्थ के सदुपयोग और सुरक्षा का सूत्र अपने आप मानवीयता पूर्ण परिवार में प्रमाणित होता है। मानवीयता पूर्ण परिवार में भागीदारी को निर्वाह करना ही परिवार मानव का वैभव और प्रमाण है। यहाँ यह भी स्मरणीय तथ्य है कि प्रत्येक परंपराएं अपने स्वरूप में “मौलिक” हैं। अवस्थाओं के आधार पर ही परंपरा को पहचाना जाता है। जैसे - पदार्थावस्था में तात्विक रूप से रचना तक की सम्पूर्ण प्रजातियाँ अपने-अपने स्वरूप में मौलिक है। यथा दो अंश से या अनेक अंशों से गठित परमाणुएँ और ऐसे परमाणुओं से रचित अणु, अणु रचित रचनाएं, मृत पाषाण, मणि, धातुओं के रूप में दिखती हैं। यही मौलिकता है। इसमें प्रत्येक प्रजाति का भी वर्गीकरण अपने स्वरूप में वैभवित रहते हुए विकास क्रम में एक-दूसरे की प्रवृत्ति सहअस्तित्व सहज विधि से पाये जाने वाले सहवास स्वाभाविक है। सहवास विधि से ही अणुबंधन विधि दृष्टव्य है। परमाणु में नाभिकीय रूप में एक से अधिक अंशों का होना ही भारबंधन का सूत्र है। इसको और स्पष्ट रूप में देखना इस प्रकार बनता है कि प्रत्येक परमाणु में एक से अधिक अंश निश्चित दूरी पर एक दूसरे के साथ तालमेल से हैं और वह तालमेल स्वयं एक गति पथ सहित होना पाया जाता है।