मानवीय संविधान
by A Nagraj
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- परंपरा में मानव संस्कृति-सभ्यता, विधि-व्यवस्था और व्यवस्था सहज आयोजनोत्सव न्याय है।
7.2 (9) उत्पादन कार्य में न्याय
हर परिवार में आवश्यकता से अधिक तादात में उत्पादन, उत्पादन का स्रोत मानव द्वारा मानवेत्तर प्रकृति में संतुलन जिसकी पूरकता, उपयोगिता, उदात्तीकरण प्रणाली वर्तमान रहे, इन तथ्यों पर जागृत रहते हुए उत्पादन कार्य में हर परिवार का स्वावलम्बी रहना आवश्यक है। आवश्यकता से अधिक उत्पादन सहज प्रमाण भी न्याय है।
हर परिवार में सामान्य व महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तुओं की आवश्यकता निर्धारित होती है। इसी क्रम में दश सोपानीय आवश्यकतायें व्यवस्था में आवश्यकतायें उपयोगिता, सदुपयोगिता, प्रयोजनशीलता स्पष्ट हो जाती है। यह न्याय है।
- शरीर पोषण-संरक्षण व समाज गति के लिये आवश्यकीय वस्तुओं का उत्पादन करना न्याय है।
- हर परिवार द्वारा आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना न्याय है।
- कृषि-पशुपालन रत परिवार में पानी उपचार का संरक्षण एवं फसल का उपचार (फसल संरक्षण), बीज खाद स्वायत्तता का होना न्याय है।
- कृषि-पशुपालन कार्यरत हर परिवार अपने से उत्पादित वस्तुओं का श्रम नियोजन व उपयोगिता के आधार पर मूल्यांकन करना व विनिमय करना न्याय है।
- जागृत मानव परिवार में ही स्वायत्तता, स्वतंत्रता, समाधान सहित आवश्यकता से अधिक उत्पादन रूप में स्वावलम्बन समृद्धि सहज रुप में प्रमाणित होना न्याय है।
- कृषि-पशुपालन के साथ हस्त कला, ग्राम शिल्प, कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग ऊर्जा संतुलन मानवीयता पूर्ण कला साहित्य सर्जन-सम्प्रेषणा में अधिकार सम्पन्नता न्याय है।
- समझदारी सहित कृषि-पशुपालन पूर्वक समाधान, समृद्धि का प्रमाण होना न्याय है।
कृषि-पशुपालन रत हर परिवार जन का निपुणता-कुशलता-पांडित्य सम्पन्न रहना न्याय है।