मानवीय संविधान

by A Nagraj

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Page 98
  • परंपरा में वास्तविकता सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में सत्यता सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में स्थिति सत्य बोध सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में वस्तुगत सत्य बोध सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में सहअस्तित्व सहज प्रमाण सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में सहअस्तित्व में विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति बोध सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में जीवन सहज प्रयोजन, शरीर सहज आवश्यकता स्पष्ट रहना न्याय है।
  • परंपरा में जागृत मानव स्वभाव सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में सर्वतोमुखी समाधान सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सुलभ व प्रमाणित रहना न्याय है।
  • परंपरा में जागृति सहज अखण्ड समाज सहज अर्थ में सार्वभौम व्यवस्था प्रमाणित रहना न्याय है।
  • परंपरा में स्वत्व, स्वतंत्रता, अधिकार सहज स्वराज्य प्रमाणित रहना न्याय है।
  • परंपरा में परिवार मूलक स्वराज्य वैभव सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में जागृति सहज वैभव सुलभ रहना न्याय है।
  • परंपरा में मानवत्व प्रमाण रूप में वर्तमान रहना न्याय है।
  • परंपरा में परिवारों में स्वास्थ्य-संयम सुलभता रहना न्याय है।
  • परंपरा में मानवीयता पूर्ण आचरण, जागृति पूर्वक व्यवहार किया जाना ही न्याय है।
  • परंपरा में अनुभव मूलक, शिक्षा-दीक्षा, दीक्षान्त (परंपरागत), विवाहोत्सव कार्यक्रम न्याय और स्वतंत्रता है।
  • परंपरा में विवाहोत्सव में परस्पर जागृत होने रहने का सत्यापन सहज प्रमाण, व्यवस्था में जीने का संकल्प सहित दाम्पत्य स्वीकृति न्याय है।

परंपरा में ऋतु-काल-संतुलन उत्सव न्याय है।