मानवीय संविधान
by A Nagraj
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- हर मानव सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान संपन्न होना रहना - न्याय है।
- जागृत परंपरा पीढ़ी से पीढ़ी में सुलभ होना - न्याय है।
- पीढ़ी से पीढ़ी में मानवीयता पूर्ण आचरण सुलभ होना - न्याय है।
- सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व ज्ञान सर्वसुलभ होना - न्याय है।
- परंपरा में जीवन ज्ञान सुलभ होना - न्याय है।
- मानव परंपरा में अखण्ड समाज ज्ञान सुलभ होना, सार्वभौम व्यवस्था ज्ञान सुलभ होना - न्याय है।
- मानव परंपरा में सार्वभौम व्यवस्था ज्ञान सर्वसुलभ होना - न्याय है।
- चेतना विकास मूल्य शिक्षा रूप में परंपरा में मानवीय शिक्षा संस्कार सुलभ होना - न्याय है।
- परंपरा में सुरक्षा सुलभ होना - न्याय है।
- परंपरा में तन-मन-धन रूपी अर्थ का सदुपयोग व मूल्यांकन सुलभ होना - न्याय है।
- परंपरा में हर परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन सुलभ होना - न्याय है।
- परंपरा में श्रम मूल्य के आधार पर विनिमय सुलभ होना - न्याय है।
व्यवहार परंपरा में न्याय
परंपरा में यथार्थता सुलभ रहना न्याय है।