मानवीय संविधान
by A Nagraj
जागृत मानव परंपरा में चरितार्थ संबंध, मूल्य, मूल्यों का निर्वाह और मूल्याँकन प्रमाण सम्बन्धो में होता है। हर जागृत मानव प्रमाणित करता है। समस्त मूल्य जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य, उत्पादित वस्तु मूल्य (प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन पूर्वक उपयोगिता व कला मूल्य स्थापना अर्थात् उत्पादन) अर्थात् श्रम नियोजन पूर्वक वस्तु मूल्य उपयोगिता-कला के रूप में है।
प्राकृतिक वैभव = सहअस्तित्व में पूरकता, उपयोगिता।
सहअस्तित्व नित्य प्रभावी है इसलिए प्राकृतिक ऐश्वर्य का मूल्य शून्य है।
प्रकृति ही धरती, हवा, पानी, पहाड़, समुद्र, नदी, नाला, जंगल, जीव, जानवर वस्तुएं हर मानव के सम्मुख दृश्य रूप में है।
सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व
जागृत मानव में, से, के लिए सत्ता में सम्पृक्त जड़ चैतन्यात्मक प्रकृति रूप में और परमाणु में विकास क्रम में रासायनिक-भौतिक, ठोस, तरल, विरल व रासायनिक वैभव का प्राण कोषा, उनमें निहित रचना विधि सहित विविध रचनायें।
जीव शरीर एवं मानव शरीर भी प्राण कोषाओं से रचित होना, शरीर एवं जीवन संबंध सहअस्तित्व सहज वर्तमान संबंध में सहअस्तित्व नित्य प्रभावी होना स्पष्ट है।
जागृत मानव
हर जागृत मानव मनाकार को परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन के रूप में साकार करने वाला, सर्वतोमुखी समाधान रूप में मन:स्वस्थता (अभ्युदय) सहज प्रमाण प्रस्तुत करता है।
अभ्युदय
सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्न मानव परंपरा।