मानवीय संविधान
by A Nagraj
बुद्धि शक्ति में,
आत्मा में अनुभव बल, चित्रण क्रिया चित्त शक्ति में,
अनुभव बोध प्रमाणित चित्रण करने में
बुद्धि में बोध न्याय-धर्म-सत्य भाषा भाव (अर्थ) समेत चित्रण है।
सहज स्वीकार बुद्धि बल में होता चित्रण जिसमें भाव भंगिमा
है। चित्त में चिंतन रूप में स्पष्ट मुद्रा अंगहार समाया रहता है।
होता है। वृत्ति में तुलन क्रिया में प्रमाणीकरण विधि-विधानों
न्याय-धर्म-सत्य का स्पष्ट होना का विश्लेषण करना ही
विश्लेषण सम्पन्न होता है। विचार है।
न्याय-धर्म-सत्य सम्मत मूल्यों प्रमाणित होने के लिए निश्चित
का आस्वादन मन में सम्पन्न होता है। विचारों के अनुसार संबंधों का
यह सदा-सदा होता है। चयन क्रिया कर पाने की
इसलिए यही जागृति सहज आशा में, से, के लिए किया
मनोबल अक्षय है। जाना स्पष्ट है।
जागृत मानव परंपरा में अनुभव प्रमाणों को प्रमाणित करने में जीवन जागृत रहता है। कल्पनाशीलता जागृति के अनुरूप कार्य करता है अर्थात् प्रमाणों के बोध सहित बुद्धि में संकल्प, संकल्प के अनुरूप चिंतन-चित्रण कार्य चित्त में सम्पन्न होता है। फलत: चित्रण के अनुसार तुलन-विश्लेषण होता है। पुनश्च प्रमाणों के आधार पर आस्वादन पूर्वक चयन क्रिया मन में सम्पन्न होती है। यही जागृति के अनुसार होने वाले परावर्तन प्रकाशन है।