मानवीय संविधान

by A Nagraj

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उदारता = स्वयं जैसे और अधिक श्रेष्ठता में, से, के लिए किये गये तन-मन-धन का अर्पण-सेवा)-समर्पण

अर्पण का तात्पर्य तन व धन से की गई सेवा, तन-मन-धन से किया गया उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजनशीलता समर्पण है।

दया = पात्रता के अनुरूप वस्तु को उपलब्ध करना

कृपा = वस्तु के अनुरूप पात्रता को स्थापित करना

करुणा = पात्रता, योग्यता को स्थापित करना

जागृत मानव दृष्टि

संबंध निर्वाह = न्याय, सत्य सहज वैभव समाधान निरंतरता

न्याय = संबंधों में जागृति सहज प्रमाण सहित पहचानना, मूल्यों का निर्वाह करना, मूल्यांकन करना, उभयतृप्ति एवं संतुलन प्रमाणित होना

धर्म = सर्वतोमुखी समाधान पूर्वक दश सोपानीय व्यवस्था में भागीदारी

क्यों और कैसे के उत्तर को हर दृष्टिकोण, परिप्रेक्ष्य, आयाम से जानना, मानना फलत: हर स्थिति में समाधान प्रस्तुत करना, यही अभ्युदय है। यही सर्वतोमुखी समाधान है।

सत्य = सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में ज्ञान, विवेक, विज्ञान पूर्वक पहचानना निर्वाह करना।

  • जागृत मानव में धर्म सार्थक होता है।
  • मानव सुख धर्मी है।
  • जागृत मानव सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्न होता है।

समाधान = सुख, समस्या = दु:ख

जागृत-मानव

जागृत मानव सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति रूपी सहअस्तित्व में ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहित पूर्णता अभ्युदय के अर्थ में नियंत्रित संचेतना सम्पन्न रहता है। जागृत