मानवीय संविधान
by A Nagraj
- पदार्थावस्था में परिणामानुषंगीय यथास्थिति पूरकता व उपयोगिता है।
- प्राणावस्था में बीजानुषंगीय यथास्थिति पूरकता व उपयोगितायें हैं।
- जीवावस्था में वंशानुषंगीय विधि से यथास्थिति पूरकता व उपयोगितायें अध्ययन गम्य है।
- ज्ञानावस्था में मानव संस्कारानुषंगीय एवं संज्ञानीयता में नियंत्रित संवेदनायें तथा संस्कार समझदारी विधि से यथास्थिति पूरकता, उपयोगिता प्रमाणित होने की व्यवस्था एवं आवश्यकता समझ में होना-रहना है।
मानव परंपरा में हर नर-नारी समझ के आधार पर प्रवर्तनशील है।
सहअस्तित्व में अनुभव मूलक विधि से मूल्यों की अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा और प्रकाशन है। जागृत मानव परंपरा में मूल्यों का वर्तमान प्रमाण स्वाभाविक है। यह शिक्षा संस्कार विधि से सर्व सुलभ होगा।
जीवन मूल्य = सुख, शांति, संतोष, आनंद सहज अभिव्यक्ति
मानव मूल्य = धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करुणा सहज प्रमाण
स्थापित मूल्य = कृतज्ञता, गौरव, श्रद्धा, प्रेम, विश्वास, वात्सल्य, ममता, सम्मान, स्नेह
शिष्ट मूल्य = सौम्यता, सरलता, पूज्यता, अनन्यता, सौजन्यता, उदारता, सहजता, अरहस्यता (स्पष्टता), निष्ठा सहज निर्वाह
वस्तु मूल्य = उपयोगिता, कला
4.6 (8) जीवन मूल्य मौलिकता
मानव लक्ष्य - जीवन मूल्य संयुक्त रूप से मानव परंपरा सहज वैभव
समाधान पूर्वक - सुख
समाधान, समृद्धि पूर्वक - सुख, शान्ति
समाधान, समृद्धि, अभय (वर्तमान में विश्वास) पूर्वक - सुख, शान्ति, संतोष
समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण पूर्वक - सुख, शान्ति, संतोष, आनंद