मानवीय संविधान

by A Nagraj

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4.6 (9) स्वयं में विश्वास

  • सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान, विवेक, विज्ञान में विश्वास,

सहअस्तित्व में विकास क्रम विधि सहज ज्ञान में विश्वास,

गठनपूर्ण परमाणु के रूप में जीवन व जागृत जीवन क्रिया में विश्वास,

जीवों में जीवनीक्रम में वंशानुषंगीय होने में विश्वास,

भ्रमित मानव जीवन जागृति क्रम में होने में स्पष्ट,

जीवन में, से, के लिए जागृति स्वत्व-स्वतंत्रता-अधिकार सहज वैभव होने में विश्वास,

शरीर व जीवन संयुक्त रूप में मानव शाकाहारी होने में विश्वास,

  • स्वयं में विश्वास,

फलस्वरूप श्रेष्ठता का सम्मान में विश्वास,

प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन में विश्वास,

व्यवहार में सामाजिक होने में विश्वास,

उत्पादन कार्य रूपी व्यवसाय में स्वावलम्बन सहज विश्वास होना ही स्थिति, मौलिकता को प्रमाणित करना ही जागृति है, हर नर-नारी जागृति को स्वीकारता है।

4.6 (10) मूल्यों सहज प्रमाण परंपरा

संबंधों में मानवत्व सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज प्रयोजन के आधार पर पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन, उभय तृप्ति व संतुलन रूप में ही न्याय सुलभ होना ही सुनिश्चित बिन्दु है।

चरित्र = स्वधन, स्वनारी-स्वपुरूष, दया पूर्ण कार्य व्यवहार करना, कराना, करने के लिए सहमत होना।

नैतिकता = तन, मन, धन रूपी अर्थ का सदुपयोग और सुरक्षा करना।

मानवीयता पूर्ण आचरण में मूल्य, चरित्र, नैतिकता अविभाज्य रूप से वर्तमान रहता है। यह जागृत मानव में ही प्रमाणित होता है।