मानवीय संविधान

by A Nagraj

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बौद्धिक = जागृति पूर्वक अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में, से, के लिए परंपरा में कार्य-व्यवहार करना प्रेरणा स्रोत होना।

व्यवहारिक = जागृति सहज विधि से नियम, नियंत्रण, संतुलन, सहित सर्वतोमुखी समाधान रूपी मानव धर्म, सहअस्तित्व रूपी परम सत्य बोध व अनुभव मूलक प्रणाली से प्रमाणित रहना।

4.6 (3) संप्रभुता

तात्विक = मानवीयता, देव मानवीयता व दिव्य मानवीयता सहज प्रमाण परंपरा।

बौद्धिक = पूर्णता के अर्थ में पारंगत होना प्रबुद्धता का सहज प्रमाण, ‘चेतना-त्रय’ प्रमाण परंपरा वर्तमान।

व्यवहारिक = अखण्डता सार्वभौमता का सूत्र व्याख्या रूपी प्रमाण परंपरा।

4.6(4) प्रभुसत्ता

तात्विक = प्रबुद्धता नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म, सत्य पूर्ण सत्ता ज्ञान विवेक विज्ञान सहज परंपरा सूत्र व्यख्या।

बौद्धिक = प्रबुद्धता पूर्वक सहज निरंतर प्रमाण सहज सत्ता में जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने का क्रिया।

व्यवहारिक = प्रबुद्धता पूर्ण मानव परंपरा ही पीढ़ी से पीढ़ी में शिक्षा-दीक्षा संस्कार रुप में सत्ता = अखण्डता सार्वभौमता रुपी वैभव परंपरा।

प्रभुसत्ता सहज निरंतरता ही जागृत मानव चेतना सहज परंपरा है। शिक्षा-संस्कार, उत्पादन-कार्य, न्याय- सुरक्षा, स्वास्थ्य-संयम, विनिमय -कोष कार्य ही जागृत मानव परंपरा है।

4.6 (5) राष्ट्रीयता

तात्विक = अखण्ड समाज के अर्थ में सार्वभौम व्यवस्था सहज परंपरा।

बौद्धिक = मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा सुलभता।