मानवीय संविधान

by A Nagraj

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भाग – चार

संविधान, विधान, विधि, न्याय, आचरण सूत्र व्यवस्था व स्वराज्य स्वतंत्रता

संविधान

क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता के अर्थ में अनुभव प्रमाण व्यवहार-कार्य रूप में संविधान है।

समझदारी के रूप में अनुभव प्रमाण मूलक शिक्षा संस्कार परंपरा सहज प्रावधान ही संविधान का प्रमुख भाग है।

हर नर-नारी में, से, के लिए समझदारी सम्पन्न होने का अधिकार सहज मानवीय शिक्षा सहज प्रावधान फलस्वरूप मानव चेतना सहज प्रतिष्ठा सहित देव चेतना, दिव्य चेतना सहज प्रमाण ही संस्कार और यही संविधान।

स्पष्टीकरण

संविधान क्रियापूर्णता, सर्वतोमुखी समाधान, अभ्युदय, आचरणपूर्णता अर्थात् अनुभवमूलक विधि सहज अभ्युदय, नि:श्रेयस, भ्रममुक्ति के अर्थ में सुनिश्चित सूत्र व्याख्या है। संविधान पूर्णता के अर्थ में सुनिश्चित आचरण व्यवस्था सहज सूत्र-व्याख्या है।

सहअस्तित्व में ही भौतिक-रासायनिक व जीवन क्रियायें चार अवस्था में वर्तमान है। सहअस्तित्व नित्य प्रभावी है। व्यापक वस्तु में ही सभी एक-एक वस्तुएं अविभाज्य, संपृक्त रूप में नित्य वर्तमान है। यही पदार्थ, प्राण, जीव तथा ज्ञानावस्था रूप में इसी धरती पर विद्यमान है।

प्रत्येक एक अपने ‘त्व’ सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी करता हुआ वर्तमान है। विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति सहज अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा व प्रकाशन है।

अभ्युदय = सर्वतोमुखी समाधान, क्रियापूर्णता सहज प्रमाण परंपरा।