मानवीय संविधान
by A Nagraj
नि:श्रेयस = सर्वतोमुखी समाधान सहित लोकेषणा से भी मुक्ति, जागृति पूर्वक आचरणपूर्णता प्रमाण प्रवृत्ति अर्थात् उपकार प्रवृत्ति ही है।
पूर्णता = गठनपूर्णता अर्थात् चैतन्य इकाई (जीवन क्रिया)। जीवन और शरीर का संयुक्त रूप में मानव, जीवंत मानव में, से, के लिये संज्ञानीयता ही क्रियापूर्णता और आचरणपूर्णता सहज प्रमाण ही जागृतिपूर्ण मानव परंपरा है।
विधान
- मानव लक्ष्य समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व परंपरा के अर्थ में आचरण (मूल्य, चरित्र, नैतिकता सहित) सूत्र व्याख्या सहज परंपरा।
- अखण्ड समाज ही दश सोपानीय सार्वभौम व्यवस्था सहज व्याख्या।
- मानव लक्ष्य सफल होना ही जीवन मूल्य प्रमाणित होना।
विधि = जीवन मूल्य सुख, शांति, संतोष, आनंद के अर्थ में, मानव लक्ष्य समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण के रूप में मानव परंपरा में, से, के लिए स्थिति-गति सूत्र व्याख्या, अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था सहज प्रमाण परंपरा।
व्यवस्था = विश्वास (संबंधों में मूल्य निर्वाह), सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्नता सहित अखण्ड समाज सार्वभौम सूत्र व्याख्या सहज परंपरा।
स्पष्टीकरण - व्यवस्था ही जागृत परंपरा है। वर्तमान में सभी संबंधों कार्य-व्यवहार में विश्वस्त, भविष्य क्रम में स्वीकार किया गया कार्य-व्यवहार स्थिति-गति सहज संस्कृति-सभ्यता में, से, के लिए आश्वस्त रहना व्यवस्था है। विगत का स्मरण, वर्तमान में विश्वास, जागृति सहज प्रमाण, भविष्य की योजनाओं में आश्वस्त रहना व्यवस्था है।
विधान
तात्विक = मानव लक्ष्य सहज समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण परंपरा के अर्थ में आचरण सूत्र व्याख्या रूपी प्रमाण वर्तमान है।
बौद्धिक = जीवन लक्ष्य के अर्थ में मानव लक्ष्य को प्रमाणित करने का कार्य व्यवहार व्याख्या।