मानवीय संविधान

by A Nagraj

Back to Books
Page 209
  • विकास व ह्रास क्रम में प्राणपद चक्र विधि से वर्तमान है। यही भौतिक-रासायनिक क्रिया है।
  • जीवावस्था में जीवन शरीर रचना के अनुसार वंशानुषंगीय विधि से कार्यरत रहता है।
  • क्रिया-प्रक्रिया-आचरण से ही परस्परता विधि में, से, के लिए प्रत्येक का मूल्यांकन होता है।

जागृत मानव परंपरा

  • मानव परंपरा में हर नर-नारी पीढ़ी दर पीढ़ी अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन होने के आधार पर, जानने-मानने के आधार पर अपने को परस्परता में पहचानता, निर्वाह करता है।
  • दुर्घटनाओं के आधार पर आधारित सूचनायें सूची बनकर रह जाती है, न कि जीने के रूप में परंपरा।
  • मानव ही जागृति सहज शिक्षा-संस्कार पूर्वक मानवीय संस्कृति-सभ्यता, विधि-व्यवस्था का धारक-वाहक है। यही मानवीयता पूर्ण परंपरा है।
  • सहअस्तित्ववादी समझ ही जागृत परंपरा है।
  • जागृति सम्पन्न मानव परंपरा में निर्वाह सहज मूल प्रवृत्तियिाँ साक्ष्य है।
  • प्रत्येक जागृत मानव (नर-नारी) समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी का धारक-वाहक है अथवा होना चाहता है। यही मानव परंपरा सहज अक्षुण्णता है।
  • समझदारी, ईमानदारी रूपी सहज सार्थकता ही जागृत मानव परंपरा है।
  • मानवत्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज स्वीकृति, अभिव्यक्ति की सम्प्रेषणा प्रकाशन प्रमाण है। यही जागृत मानव परंपरा है।
  • सर्व मानव जागृति पूर्वक स्वीकृति सहित किया गया कार्य-व्यवहार व्यवस्था सहज रुप में प्रमाणित होना ही सत्य स्वीकृत सम्पन्न मानव परंपरा है।

जागृत परंपरा सर्व मानव में अखण्ड समाज के अर्थ में सार्थक है।