मानवीय संविधान
by A Nagraj
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- विकास व ह्रास क्रम में प्राणपद चक्र विधि से वर्तमान है। यही भौतिक-रासायनिक क्रिया है।
- जीवावस्था में जीवन शरीर रचना के अनुसार वंशानुषंगीय विधि से कार्यरत रहता है।
- क्रिया-प्रक्रिया-आचरण से ही परस्परता विधि में, से, के लिए प्रत्येक का मूल्यांकन होता है।
जागृत मानव परंपरा
- मानव परंपरा में हर नर-नारी पीढ़ी दर पीढ़ी अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन होने के आधार पर, जानने-मानने के आधार पर अपने को परस्परता में पहचानता, निर्वाह करता है।
- दुर्घटनाओं के आधार पर आधारित सूचनायें सूची बनकर रह जाती है, न कि जीने के रूप में परंपरा।
- मानव ही जागृति सहज शिक्षा-संस्कार पूर्वक मानवीय संस्कृति-सभ्यता, विधि-व्यवस्था का धारक-वाहक है। यही मानवीयता पूर्ण परंपरा है।
- सहअस्तित्ववादी समझ ही जागृत परंपरा है।
- जागृति सम्पन्न मानव परंपरा में निर्वाह सहज मूल प्रवृत्तियिाँ साक्ष्य है।
- प्रत्येक जागृत मानव (नर-नारी) समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी का धारक-वाहक है अथवा होना चाहता है। यही मानव परंपरा सहज अक्षुण्णता है।
- समझदारी, ईमानदारी रूपी सहज सार्थकता ही जागृत मानव परंपरा है।
- मानवत्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज स्वीकृति, अभिव्यक्ति की सम्प्रेषणा प्रकाशन प्रमाण है। यही जागृत मानव परंपरा है।
- सर्व मानव जागृति पूर्वक स्वीकृति सहित किया गया कार्य-व्यवहार व्यवस्था सहज रुप में प्रमाणित होना ही सत्य स्वीकृत सम्पन्न मानव परंपरा है।
जागृत परंपरा सर्व मानव में अखण्ड समाज के अर्थ में सार्थक है।