मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • सर्व मानव को मानवीयता के आधार पर पहचानना ही अखण्ड समाज के रूप में सर्वशुभ के लिए प्रमाण है।
  • सर्व मानव मानवत्व सहित परिवार में प्रमाणित होना और वैभव सहज स्वराज्य मूलक परिवार व्यवस्था में भागीदारी करने के रूप में स्पष्ट होता है।
  • जागृत मानव परंपरा में हर नर-नारी स्वानुशासनपूर्वक अखण्ड सामाजिकता के अर्थ में अभिव्यक्त रहते हैं और मानवत्व सहित परिवार में व्यवस्था, परिवारमूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी के रूप में प्रमाणित होता है।
  • जागृत परंपरा में हर नर-नारी स्वयं में समग्र अस्तित्व में, परस्पर मानव संबंधों में और मानवेत्तर प्रकृति के साथ व्यवस्था सूत्र के आधार पर विश्वास ही स्वयं में विश्वास है।
  • जागृत परंपरा में हर नर-नारी नियम, नियंत्रण, संतुलनपूर्वक न्याय, धर्म, सत्याभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रकाशन में सार्थक एवं समान है।
  • समस्त मानव जागृतिपूर्वक ही व्यवस्था में, से, के लिए प्रमाणित होता है।
  • मानव परंपरा में संबंधों के आधार पर न्याय प्रमाणित होता है।
  • सर्वशुभ में ही स्वशुभ समाया है। यही अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज ध्रुव बिन्दु है।
  • सर्व मानव में शुभ ही मानव परंपरा सहज वैभव है।
  • सर्वशुभ का स्रोत नित्य समीचीनता सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन सहज समझ, लक्ष्य, दिशा, निर्णय क्रियाकलाप ही चिंतन का स्वरूप है। यह साक्षात्कार है।
  • मानव परंपरा में ही जागृति सहज परंपरा वैभव है।
  • सर्व मानव में, से, के लिए जागृति सहज समझ, विचार, व्यवहार कार्य का अपनाना आवश्यक है।
  • जागृत मानव परंपरा में अनुसंधान और शोधपूर्वक जागृति का वैभव परंपरा सहज रुप में सार्थक है।

दृष्टा पद व जागृति मानव परंपरा में ही प्रमाणित होता है।