मानवीय संविधान
by A Nagraj
भाग – ग्यारह
हर व्यक्ति में परीक्षण सूत्र
मैं अपने में क्या हूँ? कैसा हूँ? क्या चाहता हूँ? का समाधान रूप में
11 (1)
मैं क्या हूँ?
मैं मानव मनाकार को साकार करने वाला मन:स्वस्थता सहज विधि प्रमाणित करने वाला हूँ। जागृति पूर्वक मन:स्वस्थता को प्रमाणित करता हूँ।
मैं कैसा हूँ?
मैं ज्ञानावस्था सहज प्रतिष्ठा सम्पन्न इकाई हूँ। मैं शरीर व जीवन सहज संयुक्त साकार रूप हूँ। मानव परंपरा प्रदत्त है मेरा शरीर और सहअस्तित्व में परमाणु में विकास फलत: जीवन सहज स्व स्वरूप हूँ।
मैं जीवन सहज रूप में जानने, मानने वाला हूँ, मानव रूप में पहचानने, निर्वाह करने का क्रियाकलाप हूँ। शरीर के साथ में पाँच ज्ञानेन्द्रियों और पाँच कर्मेन्द्रियों व उसके क्रियाकलापों का दृष्टा हूँ।
मैं मानवत्व सहित व्यवस्था हूँ।
मैं क्या चाहता हूँ?
मैं मानव सहज रूप में बौद्धिक समाधान, भौतिक समृद्धि सहित सुखी होना, रहना चाहता हूँ।
मैं जीवन जागृति में पारंगत सहज प्रमाण और उसकी निरंतरता चाहता हूँ। साथ ही भ्रम भय विपन्नता से मुक्त होना चाहता हूँ।
अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में स्वयं स्फूर्त विधि से भागीदारी करना चाहता हूँ। उसके योग्य क्षमता, योग्यता, पात्रता सम्पन्न होना, रहना चाहता हूँ।
हर मानव को समाधान समृद्धि सम्पन्न होना देखना चाहता हूँ।