मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • मैं अपने में क्या हूँ?
  • मैं मानव हूँ।
  • मैं मनाकार को साकार करने वाला मन:स्वस्थता का आशावादी और मन:स्वस्थता सहज पारंगत प्रमाण होने-करने वाला हूँ।
  • मैं कैसा हूँ?
  • मैं ज्ञानावस्था सहज प्रतिष्ठा सम्पन्न इकाई हूँ।
  • मैं शरीर व जीवन सहज संयुक्त साकार रूप हूँ।
  • मानव परंपरा प्रदत्त है मेरा शरीर और अस्तित्व में परमाणु में विकास फलत: जीवन सहज स्व स्वरूप हूँ।
  • मैं जीवन सहज रूप में जानने, मानने वाला व मानव रूप में पहचानने, निर्वाह करने का क्रियाकलाप करता हूँ।
  • मैं शरीर को जीवंत बनाये रखता हूँ - चेतना सहित पाँच ज्ञानेन्द्रियों, पाँच कर्मेन्द्रियों का दृष्टा हूँ।
  • मैं मानवत्व सहित व्यवस्था हूँ, समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने योग्य हूँ।

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  • मैं क्या चाहता हूँ?
  • मैं बौद्धिक समाधान, भौतिक समृद्धि सम्पन्न होना चाहता हूँ।

मैं जीवन जागृति में पारंगत प्रमाण सम्पन्न और उस में निरंतर जीना-होना-रहना चाहता हूँ।