मानवीय संविधान

by A Nagraj

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Page 174

भाग – दस

स्वराज्य व्यवस्था

स्वराज्य व्यवस्था सहज गति

“अखण्ड समाज सूत्र व्याख्या पर आधारित ग्राम मोहल्ला स्वराज्य है”

ग्राम स्वराज्य की मूलभूत इकाई समझदार परिवार है। परिवार स्वयं मानव चेतना मूल्य शिक्षा सम्पन्न मानवीयता पूर्ण व्यवस्था सहज मौलिक रूप है। मानवीयता स्वयं स्वराज्य एवं स्वतंत्रता का सूत्र स्वरुप है। स्वराज्य का तात्पर्य न्याय सुलभता, उत्पादन सुलभता और विनिमय सुलभता है। इसके पूरकता में शिक्षा-संस्कार, स्वास्थ्य-संयम आवश्यक है। स्वतंत्रता का तात्पर्य प्रत्येक मानव का स्वानुशासन सहज प्रामाणिकता और समाधान पूर्वक अभिव्यक्त, संप्रेषित व प्रकाशित होने से है, जो सहअस्तित्व रूपी परम सत्य अनुभव पूर्वक विधि से जानने व मानने से है अर्थात् सहअस्तित्व में परस्पर संबंधों व मूल्यों को पहचानने व निर्वाह करने से है। यही शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा सुलभता स्त्रोत है।

“अस्तित्व में प्रत्येक मानव मानवत्व सहित व्यवस्था है, और समग्र व्यवस्था में भागीदार है।” इसका प्रत्यक्ष रूप स्वतंत्रता के रूप में स्वयं में व्यवस्था और स्वराज्य के रूप में समग्रता के साथ भागीदारी है। समग्रता के साथ व्यवस्था में भागीदारी, एक से अधिक व्यक्तियों के साथ ही संभव है। इसलिए सहज रूप में जो एक से अधिक व्यक्तियों की सम्मिलित अभिव्यक्ति है, यही परिवार है। ऐसे परिवार में मानवीयता पूर्ण आचरण, व्यवहार सहित परस्पर बौद्धिक समाधान और भौतिक समृद्धि सुलभ होने की स्थिति में ही ग्राम स्वराज्य सहज सुलभ होगा जो अखण्ड समाज का आधार है।

परिवार मानव कुल में न्याय सुलभता सहज प्रमाण का तात्पर्य मानव व नैसर्गिक संबंधों की पहचान व उनमें निहित मूल्यों का निर्वाह ही है।

“मानव परंपरा में स्वायत्तता का स्वरूप स्थिति में स्वतंत्रता (स्वानुशासन) व गति में स्वराज्य है।”